यूपी, बिहार पर नहीं होगा मोहन यादव का ख़ास असर?

सिटी पोस्ट लाइव : मध्य प्रदेश के नए मुख्यमंत्री मोहन यादव उसी ‘यादव’ समुदाय से हैं जिसका उत्तर प्रदेश और बिहार की राजनीति में बड़ा जोर है. बिहार में लालू यादव और ऊतर प्रदेश में मुलायम यादव और उनके बेटे अखिलेश यादव की राजनीती “माय समीकरण पर ही आधारित है.” मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाकर क्या बीजेपी उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में यादव वोट बैंक में बड़ी सेंध लगाने की तैयारी में है.उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव और बिहार में लालू प्रसाद यादव को ‘यादवों’ का सबसे बड़ा नेता माना जाता रहा है.इन राज्यों में दोनों ही नेताओं की बड़ी सियासी विरासत मौजूद है. इसी विरासत को अब अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव संभाल रहे हैं.

 

बिहार में इसी साल 2 अक्टूबर को जाति आधारित गणना के आंकड़े आए थे. इसके मुताबिक़ राज्य में यादवों की आबादी क़रीब 14 फ़ीसदी है, जबकि ओबीसी समुदाय की कुल आबादी क़रीब 36 फ़ीसदी है.राज्य की राजनीति पर इस समुदाय का इतना बड़ा असर है कि अब भी बिहार विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी लालू प्रसाद यादव की राष्ट्रीय जनता दल है.बीते तीन दशक से ज़्यादा समय से लालू या उनका परिवार इस राज्य की राजनीति में बड़ा असर रखते हैं.बिहार एकमात्र ऐसा हिन्दी भाषी राज्य है, जहां बीजेपी कभी अपनी सरकार या अपना मुख्यमंत्री नहीं बना पाई है. इन दोनों ही राज्यों में बीजेपी कोई बड़ा यादव नेता खड़ा नहीं कर पाई है.ऐसे में मध्य प्रदेश में यादव चेहरे को मुख्यमंत्री बनाने से क्या बीजेपी उत्तर प्रदेश और बिहार के यादव वोटरों पर भी असर डाल सकती है?

 

राजनीतिक पंडित मानते हैं कि आमतौर पर इस तरह के नेता का दूसरे राज्यों में कोई असर नहीं होता है. मोहन यादव को बीजेपी ने भले ही मुख्यमंत्री बना दिया है, लेकिन वो नेता नहीं हैं. नेता तो नरेंद्र मोदी हैं. मोहन यादव मुलायम सिंह यादव या लालू यादव की तरह यादवों के नेता भी नहीं हैं. एक राज्य में किसी जाति का बड़ा नेता होने पर भी दूसरे राज्य में उसका ख़ास असर नहीं होता है. इस मामले में न तो मायावती किसी अन्य राज्य में बहुत सफल हो सकीं और न ही अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी मध्य प्रदेश में कुछ ख़ास कर पाई.उत्तर प्रदेश में यादवों की आबादी क़रीब 11 फ़ीसदी मानी जाती है. राज्य में मुलायम सिंह यादव और फिर उनके बेटे अखिलेश यादव भी मुख्यमंत्री रहे हैं.

 

समाजवादी पार्टी ने ‘एमवाई’ (मुस्लिम और यादव) समीकरण के आधार पर ख़ुद को राज्य में असरदार राजनीतिक ताक़त के तौर पर स्थापित किया है. मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाने के पीछे यूपी और बिहार के यादवों को संदेश देना एक मक़सद हो सकता है, लेकिन इसका कोई असर होगा ऐसा नहीं लगता है. “मोदी संदेश देने में अव्वल हैं कि देखिए हम यादवों के लिए कितने फ़िक्रमंद हैं. लेकिन यूपी या बिहार के यादवों पर वो कोई असर डाल सकें, इसके लिए बहुत वक़्त नहीं बचा है.” इसी तरह से नीतीश कुमार  ‘कुर्मी’ समुदाय के बड़े नेता माने जाते हैं, लेकिन बिहार के बाहर अन्य राज्यों में उनकी पार्टी का भी कोई ख़ास असर नहीं दिखता है. उत्तर प्रदेश में बिहार से दोगुना कुर्मी हैं और साल 2012 के विधानसभा चुनावों में नीतीश कुमार ने उत्तर प्रदेश में 200 से ज़्यादा उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें सभी की ज़मानत ज़ब्त हो गई थी.

 

क्षेत्रीय नेताओं की अपनी सीमा होती है. पहले मुलायम सिंह यादव और अब अखिलेश यादव का बिहार में कोई असर नहीं हो पाया.वैसे ही लालू प्रसाद यादव का उत्तर प्रदेश में कोई प्रभाव नहीं बन पाया. यहां तक कि बिहार की सीमा से सटे यूपी के इलाक़ों में उनका कोई असर नहीं दिखता.वहीं जनता दल के पुराने नेता शरद यादव मध्य प्रदेश के ही होशंगाबाद के थे, जिन्होंने पहले यूपी और फिर बिहार में राजनीति की.लेकिन शरद यादव भी इन राज्यों में जाति की राजनीति नहीं कर पाए, बल्कि ‘सोशलिस्ट’ नेता के तौर पर राजनीति करते थे.

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