कांग्रेस के ‘पीएम बम’ से विपक्षी खेमे में हड़कंप.

 

सिटी पोस्ट लाइव :विपक्षी दलों को एकसाथ लाने में अहम् भूमिका नीतीश कुमार ने निभाई.जातीय जनगणना भी उन्होंने करवा कर देश के सामने एक नया मिशाल कायम किया.लेकिन ईन दोनों कामों का फायदा उन्हें नहीं मिल.कांग्रेस पार्टी ने नीतीश कुमार के दोनों काम का फायदा खुद उठा लिया.विपक्षी गठबंधन की स्टीयरिंग सीट पर कांग्रेस बैठ गई और जातीय जनगणना के आधार पर ओबीसी का राग राहुल  गांधी ने अलापना शुरू कर दिया. कायदे से  विपक्षी गठबंधन की कमान नीतीश कुमार के हाथ में होनी चाहिए थी जातीय जनगणना कराने की वजह से उन्हें  पीएम पद का भावी उम्मीदवार घोषित करना चाहिए था.लेकिन कांग्रेस नेता शशि थरूर ने  पीएम पद के लिए ल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी का नाम उछाल कर  नीतीश कुमार के सरे  मंसूबों पर पानी फेर दिया.

 

कांग्रेस नेता शशि थरूर ने कांग्रेस के प्रधानमंत्री उम्मीदवार को लेकर बड़ा खुलासा करते हुए  कहा है कि अगर विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करता है तो कांग्रेस अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे या फिर राहुल गांधी को प्रधानमंत्री के रूप में नामित कर सकती है. कांग्रेस काफी हद तक परिवारवादी पार्टी है. शशि थरूर के पहले कांग्रेस के एक और दिग्गज नेता कमलनाथ ने भी कहा था कि कांग्रेस की ओर से निर्विवाद रूप से पीएम फेस राहुल गांधी ही होंगे. यानी अगर आखिरी वक्त तक इंडिया अलायंस बरकरार रहता है तो राहुल गांधी ही पीएम का चेहरा होंगे, अब इसमें शक की कोई गुंजाइश नहीं दिखती.

 

बिहार के महागठबंधन में शामिल आरजेडी और जेडीयू के नेता नीतीश को लगातार पीएम फेस बता रहे थे. इसके लिए पटना में कभी पोस्टर लगाए गए तो कभी लालकिले के तर्ज पर बने पंडाल में नीतीश को बिठाया गया. बिहार के विपक्षी नेताओं की इच्छा यही थी कि नीतीश कुमार ही पीएम पद का दावेदार बनें. उत्साह में नीतीश विपक्षी नेताओं के दरवाजे पर दस्तक देते रहे. हालांकि नीतीश ने खुद ही इस बात का खंडन कर दिया था कि वे पीएम पद की रेस में हैं. इसके बावजूद हाल तक आरजेडी के विधायक और लालू यादव परिवार के करीबी भाई बीरेंद्र जोर देकर कहते रहे हैं कि नीतीश पीएम पद के उपयुक्त और सशक्त दावेदार हैं.

 

नीतीश कुमार का लंबा राजनीतिक करियर रहा है. वे परिस्थितियों को अपने अनुकूल ढालना जानते हैं. यही वजह है कि वर्ष 2005 से अब तक कभी सरकार बनाने लायक अपनी पार्टी के विधायकों की संख्या न रहने के बावजूद वे लगातार 18 साल से बिहार के सीएम बनते रहे हैं.बिहार विधानसभा के पिछले चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू की काफी दुर्गति हुई. उनके विधायकों की संख्या 43 पर सिमट गई. सहयोगी पार्टी बीजेपी के सर्वाधिक विधायक थे. नीतीश नाराज होकर कोप भवन में चले गए. वे जानते थे कि सबसे अधिक विधायकों वाली पार्टी बीजेपी अकेले कुछ कर नहीं पाएगी. नतीजा यह हुआ कि बीजेपी के बड़े नेताओं को नीतीश के मानमनौवल के लिए आना पड़ा. आखिरकार विधानसभा में तीसरे नंबर की पार्टी जेडीयू के नेता नीतीश कुमार सीएम बन गए थे.

 

नीतीश कुमार ने विपक्षी एकता के लिए जो शुरुआती मेहनत की, उसका निजी तौर पर उन्हें लाभ नहीं मिला. उन्हें न विपक्षी गठबंधन का संयोजक बनाया गया और न उस तरह की जिम्मेवारी ही बाद में दी गई. उन्हें विपक्षी गठबंधन का संयोजक बनाने की चर्चा होती रही, लेकिन अब तो इस पर चर्चा ही नहीं होती. नीतीश कुमार आगे चलकर  किसी चमत्कार की उम्मीद कर सकते हैं. विपक्ष में रह कर भी नीतीश को इस बात का इंतजार रहेगा कि कहीं उनकी लाटरी न लग जाए.

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