नीतीश पास, अब कांग्रेस पार्टी की है अग्नि परीक्षा.

कांग्रेस के त्याग के बिना मजबूत नहीं होगी विपक्षी एकता, शिमला की बैठक में साफ होगी तस्वीर.

सिटी पोस्ट लाइव : पटना में नीतीश कुमार की पहल पर विपक्षी एकता की हुई बैठक तो सफल रही लेकिन क्षेत्रीय दलों के आपस के मतभेद और कांग्रेस से तनातनी को ख़त्म कर सीटों के बटवारे की बड़ी चुनौती अभी बाकी है.नीतीश कुमार ने विपक्ष को एक मंच पर तो ला दिया है लेकिन महागठबंधन की एकता को बनाए रखने की एक बड़ी जिम्मेदारी कांग्रेस पर है. कांग्रेस सबसे पुरानी और बड़ी पार्टी है. इसके साथ ही उसके वोट प्रतिशत भी काफी मायने रखता है.उसे  क्षेत्रीय दलों के तालमेल उसे बनाना ही पड़ेगा.  कांग्रेस की सीटों और उसके साथ के बगैर विपक्षी एकता का लंबे समय तक टिकना मुश्किल हो सकता है.

विपक्षी दलों की शिमला बैठक काफी महत्वपूर्ण है.वहां  सीटों को लेकर बात आगे बढ़ेगी. विपक्षी एकजुटता की ट्रेन बगैर क्षेत्रीय दलों को महत्व दिए आगे नहीं बढ़ पाएगी. बिहार में राजद, जदयू ही मुख्य रूप से विपक्ष के मुकाबले में हैं. कांग्रेस और वामदल भी जरूर हैं पर राजद और जदयू के आगे वह इतने ताकतवर नहीं.इसलिए बिहार में तो हर हाल में कांग्रेस को नरमी दिखानी होगी. यहां लोकसभा की 40 सीटें हैं. बिहार में 2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए की बड़ी जीत में जदयू की बड़ी भूमिका थी.एनडीए को जो वोट आए थे उसमें 22 प्रतिशत वोट जदयू का था. भाजपा को जदयू से केवल एक प्रतिशत अधिक वोट मिले थे.जदयू के 16 प्रत्याशी जीते थे, जबकि भाजपा को 17 सीट मिले थे. कांग्रेस को दस प्रतिशत वोट भी नहीं मिले थे. ऐसे में बिहार में तो कांग्रेस को हर हाल में क्षेत्रीय दलों के साथ अपनी महत्वाकांक्षा पर अंकुश रखना होगा.

यूपी में  पिछली बार के आम चुनाव में कांग्रेस ने वहां सभी 80 सीटों पर अपने उम्मीदवार दिए थे. तब स्थिति थोड़ी भिन्न थी.सपा और बसपा साथ में थीं. इस बार सपा नेता व यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने महाबैठक में कांग्रेस के सुर में सुर मिलाया है.यूपी में भी कांग्रेस को सपा के संदर्भ में बड़ा दिल दिखाना होगा. बंगाल में भी तृणमूल के साथ कांग्रेस को एडजस्ट करना है.महाराष्ट्र में विपक्षी एकजुटता की इस मुहिम में शरद पवार और उद्धव ठाकरे साथ में हैं, इसलिए वहां भी कांग्रेस को बहुत ज्यादा सोचना संभव नहीं हो पाएगा. झारखंड में भी क्षेत्रीय दल है.

कांग्रेस उन राज्यों में तो पूरे इत्मीनान के साथ है, जहां क्षेत्रीय दल की मौजूदगी नहीं है. इसलिए वहां उसे अपनी सीटों को लेकर कोई परेशानी नहीं है.परंतु जिन राज्यों में क्षेत्रीय दल हैं, वहां के लिए वह अलग-अलग नीति पर काम कर रही है. कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने इस पर अपनी स्पष्ट राय भी दे दी है.शिमला की बैठक में अलग-अलग राज्यों में सीटें किस तरह से तय होंगी, इस पर मंथन के साथ नीतिगत निर्णय सार्वजनिक हो सकता है.

mission opposition