‘नीतीश के पॉलिटिकल मूवमेंट से तेजस्वी को लगा तगड़ा झटका.

सिटी पोस्ट लाइव :बीजेपी के विधान परिषद सदस्य और पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता संजय मयूख के घर जाकर नीतीश कुमार ने आरजेडी को झटका दिया है. साथियों को ऐसे झटके देकर वो ये बताने की कोशिश करते हैं वो अपनी मर्जी के बिना या किसी के दबाव में रह कर कोई काम नहीं करनेवाले.उन्होंने तेजस्वी यादव को संकेत दे दिया है उन्हें इस मुगालते में नहीं रहना चाहिए कि वो मजबूर हैं.बीजेपी के साथ दशकों तक सरकार वो अपने अजेंडे पर चलाते रहे.नीतीश कुमार की भाजपा को काबू में रखने की चाल खुद भाजपा के रणनीतिकार भी समझ नहीं पाये.

लोकसभा के चुनाव 2019 में हुए तो नीतीश ने पिछले चुनाव में मिलीं अपनी जीतीं दो सीटों के मुकाबले बीजेपी से बराबर का हिस्सा ले लिया. अपनी ताकत का एहसास करा कर नीतीश ने बराबर-बराबर सीटों (17-17) पर समझौता किया. नीतीश इस हनक के साथ भाजपा से अपनी शर्तें लगातार मनवाते रहे, जब किसी बात को अपने सहयोगियों से मनवाना होता है तो पहले वे अपने शागिर्दों को बयानवीर बना कर मैदान में उतार देते हैं. काफी खींचतान और बहस-मुबाहिसे के बाद उनकी बारी आती है. तब तक बयानवीर काम को काफी आसान बना चुके होते हैं. सच कहें तो नीतीश सिर्फ फैसले करते हैं, बातें उनके लोग ही रखते हैं.

नीतीश बार-बार यह कहते हैं कि वे किसी के भी साथ रहें, पर कोई भी काम तभी करेंगे, जब उनकी अंतरात्मा गवाही देगी. पहले भी अंतरात्मा की आवाज पर वह अमल करते रहे हैं. नरेंद्र मोदी जब गुजरात के प्रधानमंत्री थे, तो बाढ़ राहत के नाम पर बिहार को उनकी भेजी रकम नीतीश ने इसलिए लौटा दी कि उन्होंने इस बारे में अखबारों में बड़े इश्तेहार छपवाये थे. नाराज नीतीश ने मदद की रकम ही लौटा दी थी. बिहार में चुनाव प्रचार के लिए सरकार में साझीदार भाजपा ने नरेंद्र मोदी को बुलाना चाहा तो नीतीश ने जिद कर उनकी यात्रा स्थगित करा दी थी. नरेंद्र मोदी का नाम भाजपा ने जब प्रधानमंत्री के लिए गोवा अधिवेशन में तय किया तो नीतीश ने भाजपा से रिश्ता ही तोड़ लिया था.

अंतरात्मा की आवाज पर ही 2015 में वह लालू प्रसाद के साथ महागठबंधन के बैनर तले चुनाव लड़े और जब अंतरात्मा ने साथ छोड़ने के लिए कहा तो उन्होंने पल भर में राजद से रिश्ता तोड़ लिया. फिर भाजपा से रिश्ता जोड़ लिया. नरेंद्र मोदी के साथ मंच शेयर करने से भी वह बचते रहे, लेकिन जब वे प्रधानमंत्री बन गये तो नीतीश ने पुरानी रंजिश छोड़ उनके साथ उठना-बैठना इसलिए शुरू किया कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत वह देश के चुने हुए प्रधानमंत्री हैं. पर, मन की खुन्नस कभी खत्म नहीं हुई. 6 महीने पहले ही नीतीश ने भाजपा का साथ छोड़ झटके में फिर आरजेडी से हाथ मिला लिया. नीतीश आरजेडी नेताओं की हरकतों से नाराजगी का इजहार करते रहे हैं. जिस तरह बीजेपी का साथ छोड़ने के लिए वे राबड़ी आवास जाकर इफ्तार पार्टी में शामिल हुए थे, उसी तर्ज पर बीजेपी एमएलसी संजय मयूख के घर छठ का प्रसाद खाने जाकर उन्होंने लालू यादव की पार्टी आरजेडी को झटका दिया है.

लालू यादव की अस्वस्थता के बीच आरजेडी के नीति नियंता और नीतीश मंत्रिमंडल में डेप्युटी सीएम तेजस्वी यादव उन्हें साथ रह कर भी समझ नहीं पा रहे हैं. नीतीश को लेकर आरजेडी नेताओं की ऊल्टी-सीधी बयानबाजी और उनके मिजाज से इतर आरजेडी कोटे के मत्रियों के बोल उनकी नाराजगी के मूल कारण हैं. यह जानते हुए भी कि नीतीश क्या कहते हैं और क्या सोचते हैं, किसी को पता नहीं होता, तेजस्वी ने विधानसभा में कह दिया कि उन्हें न सीएम बनना है और न नीतीश जी को पीएम. नीतीश कुमार के इरादे को उन्होंने क्यों जाहिर किया, यह तो वे ही जानें, लेकिन यकीनन यह बात नीतीश कुमार को पसंद नहीं आयी होगी. इसलिए कि राहुल गांधी की संसद सदस्यता रद्द होने के बाद जिस तरह विपक्ष गोलबंद हुआ है, उसमें नीतीश के पीएम पद की दावेदारी की संभावना बढ़ गयी है.

2020 में जब उनकी पार्टी के 43 विधायक ही जीते थे तो उन्होंने सीएम बनने से इनकार कर दिया था. वे चाहते थे कि बीजेपी मानमनौवल करे तो वह अपना पत्ता खोलें. हुआ भी ऐसा ही. अनुमान यही लगता है कि तेजस्वी से भी उनकी नाराजगी इसी वजह से होगी. बहरहाल, संजय मयूख के यहां जाना तो उनकी नाराजगी का ट्रेलर है, स्थिति ऐसी ही रही तो पूरी फिल्म भी सामने आ जाएगी.

NITISH KUMAR