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नीतीश, अखिलेश और ममता को कैसे हैंडल करेगें राहुल.

तीन राज्यों में करारी हार के बाद बढ़ी राहुल गांधी की मुश्किल, जानिये आगे क्या है चुनौतियाँ.

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सिटी पोस्ट लाइव   मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में बीजेपी को  बंपर कामयाबी मिली है तो तेलंगाना कांग्रेस के हाथ गया है. चुनावी रुझानों और नतीजों से साफ है कि आम चुनाव 2024 से पहले सत्ता के सेमीफाइनल में बीजेपी ने अहम बढ़त बना ली है. बीजेपी के हौसले बुलंद हैं तो सवाल यह है कि कांग्रेस की अगुवाई वाले इंडिया गठबंधन का क्या होगा. क्या कांग्रेस सीट शेयरिंग के संबंध में घटक दलों पर दबाव बना पाएगी. या घटक दल कांग्रेस पर दबाव बना पाने में कामयाब होंगे.

 

एनडीए को टक्कर देने के लिए कांग्रेस ने यूपीए को इंडिया के कलेवर में पेश किया. बेंगलुरु में जब यूपीए का कायाकल्प हो रहा था तो राहुल गांधी ने एक बड़ी बात कही थी कि देश के सामने जो चुनौती है उससे निपटने के लिए समान विचारधारा वाले सभी राजनीतिक दलों को चुनावी मैदान में उतरना होगा. जब वो इस तरह की तकरीर कर रहे थे तो सहयोगी दलों के सुर भी एक जैसे थे. लेकिन जहां सरकार गठन में संख्या बल की जरूरत होती है वहां सवाल यह है कि इंडिया के घटक दल क्या सीटों के नाम पर आम सहमति बना पाएंगे.

 

चुनावी रुझानों और नतीजों के बीच कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने दिल्ली में इंडिया की बैठक बुलाई है जिसमें सीट शेयरिंग पर चर्चा होनी है. इंडिया गठबंधन में तीन ऐसे दल कहें या तीन ऐसे चेहरे हैं जिन पर अब निगाह गड़ गई है वो किस तरह से शीट शेयरिंग पर आम राय बना पाते हैं. वो तीन खास चेहरे सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव, बिहार के सीएम नीतीश कुमार और पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी का नाम खास है. इनमें सबसे पहले बात करेंगे अखिलेश यादव की.

 

मध्य प्रदेश चुनाव में सीटों को बंटवारे को लेकर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी किस तरह से एक दूसरे के आमने सामने आ गए थे. यह बताने की जरूरत नहीं है. सीटों की संख्या पर जब दोनों के बीच विवाद हुआ तो कांग्रेस की तरफ से यही तर्क था कि समाजवादी पार्टी का वजूद आखिर मध्य प्रदेश में कितना है. हम जितनी सीट देना चाह रहे थे वो पर्याप्त था. अब सवाल यही है कि समाजवादी पार्टी की तरफ से यूपी में यही तर्क दिया जा सकता है कि आखिर देश की सबसे पुरानी पार्टी का देश के सबसे बड़े सूबों में से एक यूपी में जमीनी ताकत कितनी है. यहां बता दें कि यूपी में लोकसभा की कुल 80 सीटें हैं और कांग्रेस के सदस्यों की संख्या उंगली पर गिन सकते हैं. हालांकि अखिलेश यादव कहते रहे हैं कि व्यापक हित में वो सीटों के लिए बलिदान करने के लिए तैयार हैं. लेकिन वो कितना बलिदान करेंगे उस संबंध में 6 दिसंबर की बैठक अहम है.

 

अखिलेश के बाद दूसरी सबसे बड़ी बाधा ममता बनर्जी की तरफ से आ सकती है. ममता बनर्जी ने तो एक बार तर्क दिया था कि जहां बीजेपी दूसरे नंबर पर है वहां कांग्रेस अपने उम्मीदवार खड़ा करत सकती है. उनके इस तर्क के हिसाब से कांग्रेस को सिर्फ 225 सीटों पर लड़ने का मौका मिलेगा. इससे जाहिर है कि कांग्रेस पहले ही जादुई आंकड़ों के रेस से बाहर हो जाएगी. यही नहीं उनके फॉर्मूले से बंगाल में कांग्रेस को सिर्फ दो सीटों पर लड़ने का मौका मिलेगा. यहां बता दें कि बंगाल कांग्रेस की इकाई वैसे भी पहले से ममता के साथ नहीं जाना चाहती है. इसके साथ ही कांग्रेस और वामदलों का साथ ममता बनर्जी को रास नहीं आता है.

 

अखिलेश यादव और ममता बनर्जी के बाद तीसरी सबसे बड़ी चुनौती नीतीश कुमार की तरफ से मिल सकती है. बिहार की राजनीति में आरजेडी का कांग्रेस के प्रति सॉफ्ट रुख सामने नजर भी आता है. लालू यादव इस बात की वकालत भी करते हैं कि कांग्रेस की अगुवाई में सभी विपक्षी दलों को एक साथ आना चाहिए. लेकिन नीतीश कुमार ने कभी खुलकर कांग्रेस की अगुवाई को स्वीकार नहीं किया. एक पल के लिए अगर मान भी लिया जाए कि बीजेपी को हराने के लिए नीतीश कुमार ने सीट के संबंध में बड़ा दिल दिखाते हैं तो वो बड़ा दिल सीटों के संबंध में क्या होगा.

 

जाहिर सी बात है कि राज्य स्तर की राजनीति में नीतीश कुमार किसी राष्ट्रीय दल को मजबूत नहीं होते हुए देखना चाहेंगे. अब जबकि चुनावी नतीजे सामने आ चुके हैं और कांग्रेस का हाल सबके सामने है तो राजनीति के ये धुरंधर खिलाड़ी सीट शेयरिंग के संबंध में कांग्रेस पर किसी तरह का दबाव ना बनाएं उसके बारे में सोचना बेमानी होगा.

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