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चुनौती को अवसर में बदले की बड़ी चुनौती.

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सिटी पोस्ट लाइव :विपक्षी इंडिया अलायंस की बैठक ऐसे वक्त पर हो रही है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के सबसे लोकप्रिय नेता हैं. विपक्ष के सामने चुनौती है कि भाजपा को लगातार तीसरी बार संसदीय चुनाव जीतने से कैसे रोका जाए. विपक्ष के लिए ये “करो या मरो की स्थिति है.विपक्ष की जो 2024 लड़ने की उम्मीद है, वो आज की  मीटिंग की सफलता पर निर्भर करती है. उम्मीद को ज़िंदा रखने के लिए इस मीटिंग का कामयाब होना ज़रूरी है. अगर विपक्ष अगला चुनाव हारता है तो वो बहुत कमज़ोर होगा और सरकार से जवाबदेही की और उसे चुनावी चुनौती देने की उसकी क्षमता कम होगी.

 

इंडिया अलायंस बनने के पहले सवाल उठे थे कि कैसे इतनी अलग अलग सोच वाली पार्टियां साथ आ सकती हैं. लेकिन ये अलायंस बना और उम्मीद बंधी कि ये तेज़ी से आगे बढ़ेगा.28 राजनीतिक दलों वाले इंडिया अलायंस की पहली बैठक जून में पटना और दूसरी बैठक बेंगलुरु में हुई थी.पिछली तीसरी बैठक  तीन महीने पहले मुम्बई  में हुई थी और उसके बाद अब जाकर इस अलायंस की बैठक हो रही है.तीसरी और चौथी बैठक के बीच में इतने लंबे समय के लिए कांग्रेस को ज़िम्मेदार माना जा रहा है. कांग्रेस को उम्मीद थी कि पांच राज्यों में विधानसभा में अच्छे प्रदर्शन के बाद अलायंस में उसकी स्थिति बेहतर होगी, और उस वजह से अलायंस में सीटों को लेकर तालमेल आदि को लेकर बातचीत रुक सी गई थी.

 

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार   इंडिया गठबंधन में धीमी गतिविधियों के लिए कांग्रेस को ज़िम्मेदार ठहरा चुके हैं.बीजेपी से लड़ाई करना या उसको हराना बहुत बड़ा काम है. अगर सभी दलों में सलीके के साथ एकता रही तो लड़ाई दिलचस्प हो सकती है.आज  19 दिसंबर की बैठक की सफलता के तीन मापदंड हैं – पहला कि विपक्षी दलों के नेता इस बैठक में आएं ताकि ये संदेश जाए कि अलायंस बरकरार है.दूसरा, सीट शेयरिंग का टाइम टेबल और तीसरा एक मिनिमम कॉमन एजेंडा, या उसका कोई ढांचा ताकि लोगों को पता चले इस अलायंस की क्या नीति है.

 

लेकिन ताज़ा विधानसभा के चुनाव ने एक बार फिर दिखाया है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील मज़बूत है, चाहे वो विधानसभा चुनाव ही क्यों न हों.इन चुनाव में लाभार्थी वोट, महिला वोट, आदिवासी वोट आदि ने भी भाजपा की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और जाति सर्वे के कांग्रेसी कार्ड को उम्मीद के मुताबिक सफलता नहीं मिली.इंडिया ब्लॉक के पास नरेंद्र मोदी के मुकाबले कोई चेहरा न होना उसकी स्थिति कमज़ोर बनाता है. साथ ही वो सीटों पर अलायंस में सहमति न होने की ओर भी इशारा करते हैं.

 

उम्मीद है कि मंगलवार की बैठक में सीट शेयरिंग को लेकर कुछ ठोस बातें सामने आएंगी.महाराष्ट्र, तमिलनाडु और बिहार में इंडिया पार्टियां पहले से ही गठबंधन में हैं. जहां नई सीट शेयरिंग होनी है वो है बंगाल, पंजाब, दिल्ली और यूपी. यहां कांग्रेस की स्थिति ऐसी नहीं है जिसमें बहुत विवाद हो.बंगाल में कांग्रेस का एक भी विधायक नहीं है. यूपी में पार्टी के दो विधायक हैं, जबकि दिल्ली में एक भी नहीं.

 

आरजेडी के राष्ट्रिय प्रवक्ता करुणा सागर के अनुसार बीजेपी अपने चुनावी चरम पर पहुंच चुकी है और ऐसी कोई जगह नहीं जहां वो सीटों में वृद्धि कर सके, और ऐसे राज्य हैं जहां उसकी सीटों की संख्या गिरेगी. विपक्ष देश के सामने न सिर्फ़ एकता का बल्कि उम्मीद का संदेश दे सकता है.उनका कहना है विपक्षी नेता अपने मतभेदों को भुलाकर साथ आएं और लगतार काम में जुटे रहे हैं.कांग्रेस के पूर्व प्रवक्ता संजय झा के अनुसार  विपक्ष के लिए अभी खेल खत्म नहीं हुआ है. उसके लिए दो बातें महत्वपूर्ण हैं- पहला, जिन राज्यों में कांग्रेस और भाजपा की सीधी टक्कर है वहां कांग्रेस का प्रदर्शन कैसा होता है, और दूसरा उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी कैसा प्रदर्शन करती है.

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