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कुख्यात अशोक महतो की रिहाई की मांग हुई तेज.

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सिटी पोस्ट लाइव : IAS अधिकारी जी कृष्णैया की हत्या के आरोपी बाहुबली नेता आनंदमोहन की रिहाई के बाद अब  दुसरे कुख्यात अशोक महतो की रिहाई की मांग तेज हो गई है.अशोक  महतो जातीय हिंसा का वो खौफनाक चेहरा है जिसके नाम से ही बड़े बड़े लोगों से लेकर अधिकारियों की पतलूनें गीली हो जाती थीं. जिसके खौफ से अधिकारी  शेखपुरा में  पोस्टिंग नहीं लेना चाहते थे ,उसके जेल से बाहर आने का रास्ता साफ़ हो सकता है.अशोक महतो को ही ‘खाकी द बिहार चैप्टर’ वेब सीरीज में चंदन महतो के रूप में दिखाया गया है. अपहरण, फिरौती, लूट, नरसंहार के आरोपी इस कुख्यात की रिहाई के लिए आवाज उठने लगी है.

सरकार के जेल मैन्युअल में संशोधन के बाद पहले आनंद मोहन रिहा हुए अब अशोक महतो भी रिहा हो सकता है. अशोक महतो के राइट हैंड रहे पिंटू महतो और करीबियों का कहना है कि जब आनंद मोहन डीएम की हत्या कर बाहर आ सकता है तो अशोक महतो केवल एक जेल प्रहरी की हत्या में 17 साल जेल में बिताने के बाद बाहर क्यों नहीं आ सकता? सैकड़ों हत्याओं के आरोपी अशोक महतो को सभी मामलों में सबूत और गवाह के अभाव में कोर्ट से आजादी मिल गई.बस एक केस नवादा जेल ब्रेक जिसमें जेल प्रहरी का मर्डर कर भागने के मामले में उसे उम्र कैद की सजा हुई. वो पिछले 17 साल से जेल में बंद है. अब एक बार फिर से क्यों उसके बाहर निकलने की चर्चा तेज है.

अशोक महतो को जेल से बाहर निकालने के अभियान में सबसे बड़ी भूमिका निभा रहा है, उसका राइट हैंड पिंटू महतो और भतीजा प्रदीप महतो. पिंटू महतो भी 13 साल जेल में रहने के बाद बाहर आया है. अब वो विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहा है.उसका कहना है कि  अशोक महतो को 100 पर्सेंट जेल से बाहर आना चाहिए. कायदे से तो आनंद मोहन के साथ ही उनकी भी रिहाई हो जानी चाहिए थी. आनंद मोहन के जेल में तो 15 साल ही हुए थे. अशोक महतो 17 साल से ज्यादा साल से जेल में हैं. उन्होंने डीएम की हत्या की थी. इनका जेल ब्रेक का मामला है, दोनों में आसमान-जमीन का अंतर है.

सरकार ने 10 अप्रैल को जेल मैन्युअल में बड़ा बदलाव किया। इसके तहत बिहार कारा हस्तक, 2012 के नियम-481(i) (क) में संशोधन करके उस क्लॉज को हटा दिया गया है, जिसमें सरकारी सेवक की हत्या को शामिल किया गया था. इसके बाद आनंद मोहन की रिहाई हुई. जब आनंद मोहन को एक कलेक्टर के मर्डर केस में परिहार मिल सकता है तो अशोक महतो को क्यों नहीं. दोनों के ऊपर एक सरकारी मुलाजिम की हत्या का आरोप है.

अशोक महतो के नाम कई नरसंहार दर्ज हैं. इनमें सबसे भयावह है अपसढ़ नरसंहार. 11 लोगों की हत्या कर दी.मरने वालों में 10 साल के बच्चे से लेकर 50 साल के बुजर्ग तक थे.इस हमले में बचने में कामयाब रहे  लोग  गांव छोड़कर भाग गए. 7 साल तक उन्होंने दिल्ली में कप-प्लेट धोकर अपना गुजारा किया. जब माहौल शांत हुआ तो वे वापस अपने गांव लौटे और अब अपना कारोबार चला रहे हैं.गांव के 50 साल के राम नरेश सिंह उस दौर को याद करते हुए कहते हैं 3 बजते ही लोग अपने-अपने घरों में बंद हो जाते थे. लगभग 3-4 सालों तक यही स्थिति रही. आधे से ज्यादा लोग गांव छोड़कर भाग गए. जो गए वो वापस नहीं लौटे। लोग गांव में शादियां तक नहीं करते थे.

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