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आनंद मोहन की रिहाई के बाद टाडा बंदियों की रिहाई की मांग तेज.

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सिटी पोस्ट लाइव : बाहुबली पूर्व सांसद आनंद मोहन की रिहाई की अधिसूचना के जारी होते ही सरकार पर सहयोगी दलों ने आरोप लगाने शुरू कर दिए हैं. महागठबंधन में दरार नजर आ रही है. आनंद मोहन के साथ 26 अन्‍य दोषियों की रिहाई सुनिश्चित होते ही भाकपा माले ने नी‍तीश सरकार से 6 टाडा बंदियों की रिहाई की मांग दोहराई है. पार्टी इसको लेकर 28 अप्रैल को पटना में धरना प्रदर्शन करने जा रही है. बिहार सरकार ने 10 अप्रैल 2023 को जेल नियमावली में एक संशोधन करते हुए उस खंड को हटा दिया जिसमें अच्‍छा व्‍यवहार होने के बावजूद सरकारी अफसरों के कातिलों की रिहाई देने पर रोक थी.

भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल ने सरकार द्वारा 14 वर्ष से अधिक की सजा काट चुके 27 बंदियों की रिहाई में बहुचर्चित भदासी (अरवल) कांड के शेष बचे 6 टाडाबंदियों को रिहा नहीं किए जाने पर गहरा क्षोभ प्रकट किया है. उन्होंने कहा कि सरकार आखिर टाडाबंदियों की रिहाई पर चुप क्यों हैं, जबकि शेष बचे सभी 6 टाडा बंदी दलित-अतिपिछड़े व पिछड़े समुदाय के हैं और जिन्होंने कुल मिलाकर 22 साल की सजा काट ली है. यदि परिहार के साल भी जोड़ लिए जाएं तो यह अवधि 30 साल से अधिक हो जाती है. सब के सब बूढ़े हो चुके हैं और गंभीर रूप से बीमार हैं.

सचिव कुणाल ने कहा कि भाकपा-माले विधायक दल ने विधानसभा सत्र के दौरान और कुछ दिन पहले ही टाडा बंदियों की रिहाई की मांग पर मुख्यमंत्री से मुलाकात की थी और इससे संबंधित एक ज्ञापन भी सौंपा था. उम्मीद की जा रही थी कि सरकार उन्हें रिहा करेगी, लेकिन उसने उपेक्षा का रूख अपनाया. सरकार के इस भेदभावपूर्ण फैसले से न्याय की उम्मीद में बैठे उनके परिजनों और हम सबको गहरी निराशा हुई है.

देश के ब्‍यूरोक्रेट की टॉप बॉडी ने दलित IAS अधिकारी की हत्या के लिए आजीवन कारावास की सजा काट रहे गैंगस्टर से नेता बने आनंद मोहन सिंह की रिहाई के लिए बिहार में हुए नियमों के बदलाव का विरोध किया है. एसोसिएशन ने बयान जारी कर कहा है कि ‘इस तरह के कमजोर पड़ने से लोक सेवकों के मनोबल का क्षरण होता है, सार्वजनिक व्‍यवस्‍था कमजोर होती है और न्‍याय प्रशासन का मजाक बनता है.

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