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कैसे विपक्ष होगा एकजुट, आपस में शुरू हो गया है टकराव.

कांग्रेस उन दलों की चार्जशीट बना रही है जो ‘उसका वोट काटकर बीजेपी को फायदा पहुंचाते हैं.’

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सिटी पोस्ट लाइव : 23 जून को पटना में होने वाली विपक्षी एकता की बैठक के पहले ही विपक्षी दल के नेता एक दुसरे दल पर सवाल उठाने लगे हैं. केजरीवाल सबसे पहले सेवा अधिकार से जुड़े अध्यादेश के मुद्दे पर कांग्रेस से अपना रुख साफ करने की मांग कर रहे हैं . कांग्रेस ममता और केजरीवाल सहित अन्य क्षेत्रीय दलों को वोट काटने से बचने की सलाह देने वाली है. यही नहीं कांग्रेस बकायदा उन दलों की चार्जशीट बना रही है जो ‘उसका वोट काटकर बीजेपी को फायदा पहुंचाते हैं.’

 

कई विपक्षी दल के नेता 23 जून को पटना में एक मंच पर जुटने वाले हैं, जहां पीएम मोदी के नेतृ्त्व वाली बीजेपी से मुकाबले का ब्लू प्रिंट सामने आ सकता है. इस दौरान पूरी माथा पच्ची इसी बात की होगी कि विपक्ष को कैसे एकजुट करके मोदी मैजिक का काट निकाला जाए. हालांकि पीएम मोदी की लोकप्रियता के चलते विपक्ष के लिए यह राह आसान नहीं है और उसके सामने कई बड़े सवाल खड़े हैं.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सबसे बड़ी ताकत और विपक्ष की सबसे बड़ी कमजोरी इसी सवाल में है. राज्यों में तो क्षेत्रीय दलों के मजबूत नेता बीजेपी को मात दे रहे हैं. यह अब भी हो रहा है और वर्ष 2019 से पहले भी हुआ, लेकिन लोकसभा चुनाव में मोदी मैजिक तोड़ने का कोई फॉर्मूला अब तक नहीं मिल पाया है.

 

कहने को ममता बनर्जी, नीतीश कुमार, राहुल गांधी और शरद पवार जैसे कई नेता पीएम बनने का ख्वाब पाले हैं, लेकिन मोदी के मुकबले सब फीके ही नजर आ रहे हैं.दूसरा सबसे बड़ा सवाल केजरीवाल बनाम कांग्रेस का है. AAP ने मध्य प्रदेश और राजस्थान में चुनाव लड़ने का एलान कर दिया है, जिससे कांग्रेस खासी नाराज़ है. उसका तर्क है कि जैसे गुजरात और गोवा में आप ने सिर्फ कांग्रेस का वोट काटा और बीजेपी को मदद पहुंचाई, वही हाल एक बार फिर दोहराया जाएगा. हालांकि आप ने कांग्रेस को यह कहकर झटका दे दिया कि अगर वो चाहते हैं कि एमपी और राजस्थान में हम चुनाव न लड़े तो उनको भी दिल्ली और पंजाब छोड़ने का एलान करना होगा.

 

यही नहीं दिल्ली में भी कांग्रेस खुद को मजबूत करना चाहती है और वह तब तक नहीं हो सकता जबतक वह यहां आप से लड़ते हुए न दिखे. यही विरोधाभास विपक्ष की एकता में बड़ी बाधा है. सीएम केजरीवाल ने 370 और कई अन्य मुद्दों पर विपक्षी दलों से अलग राय रखी है.तीसरी मुश्किल लेफ्ट बनाम ममता का है. ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में न तो कांग्रेस को पनपने देना चाहती हैं और न लेफ्ट को… यहां दोनों दल गठबंधन करके ममता से लोहा ले रहे हैं. अब ममता इसी बात से खफा हैं और चाहती हैं कि कांग्रेस लेफ्ट या टीएमसी में से किसी एक को चुनें. विपक्षी एकता में ये भी बड़ा कांटा है.

 

अरविंद केजरीवाल दिल्ली अध्यादेश पर भी सबसे पहले चर्चा चाहते हैं जो कांग्रेस को मंजूर नहीं. केजरीवाल इस पर समर्थन का दबाव बना रहे हैं, जबकि दिल्ली और पंजाब के नेता आप पर कांग्रेस को कमज़ोर करने का आरोप लगाकर किसी भी गठबंधन का विरोध कर रहे हैं. अपने नेताओं के इस रुख के कारण ही संभवत: कांग्रेस ने लगभग 20 दिन गुजर जाने के बाद भी केजरीवाल को मिलने का समय नहीं दिया है.

 

उधर यूपी में सपा, बसपा और कांग्रेस की पेंच सुलझ नहीं रही. वहीं बसपा सुप्रीमो मायावती ने अकेले चलने का एलान कर दिया है. अगर यहां कोई गठबंधन नहीं होता तो बीजेपी को 80 सीटों वाले राज्य में बंपर फायदा हो सकता है और इससे दिल्ली पहुंचने की विपक्ष की उम्मीदें टूट सकती हैं.

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