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43 साल में 8 बार पाला बदल चुके हैं मांझी.

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सिटी पोस्ट लाइव : हम पार्टी के सुप्रीमो जीतन राम  मांझी अपने 43 साल के सियासी करियर में 8 बार पाला बदल चुके हैं. अब नौवीं पाला बदलने जा रहे हैं.उनके बेटे संतोष मांझी ने नीतीश मंत्रिमंडल से इस्तीफा देकर ये साफ़ कर दिया है कि वो  एनडीए के साथ जायेगें.मांझी बिहार में कांग्रेस, जनता दल, राजद, जेडीयू और बीजेपी के गठबंधन के साथ लगभग हर दल की सरकार में मंत्री रह चुके हैं. वे हमेशा उस दल के करीब रहे हैं, जो सत्ता में रही है.2014 के  लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी बुरी तरह हार गई. हार की जिम्मेदारी लेते हुए नीतीश कुमार ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने अपने ही पार्टी के जीतन राम मांझी को सीएम बनाया. मांझी मुसहर समाज से सीएम बनने वाले वे राज्य के पहले नेता थे.

कुर्सी से हटने के बाद भी परोक्ष रूप से  नीतीश कुमार सरकार चलाते रहे. मुख्यमंत्री बनने के 8 महीने बाद मांझी नीतीश पर हमलावर हो गए. आरोप लगाया- उन्हें रबड़ स्टाम्प की तरह इस्तेमाल किया जा रहा.मांझी खुद सभाओं में कहते रहे कि वो रबड़ स्टाम्प नहीं हैं. मांझी के बगावती सुर को देखते हुए फरवरी 2015 में नीतीश कुमार ने उन्हें सीएम पद से हटा दिया. आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव के सहयोग से फिर से सीएम बन गए. मांझी ने नई पार्टी बना ली.

जीतन राम मांझी ने अपने सियासी करियर की शुरुआत कांग्रेस पार्टी में रहकर की. 1980 में पहली बार गया के फतेहपुर विधानसभा सीट से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे. पहली बार विधायक बनते ही 1983 में चंद्रशेखर सिंह की सरकार उन्हें राज्यमंत्री बनाया गया. 1985 में दोबारा विधानसभा चुनाव जीतने में कामयाब रहे. चंद्रशेखर सिंह के अलावा कांग्रेस के तीन अन्य मुख्यमंत्रियों (बिंदेश्वरी दुबे, सत्येंद्र नारायण सिन्हा और जगन्नाथ मिश्रा) के मंत्रिमंडल में भी वो 1990 तक मंत्री रहे.

1990 के विधानसभा चुनाव में जनता दल (जिसका तब चुनाव चिह्न चक्का हुआ करता था) की लहर में मांझी कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर चुनाव हार गए. चुनाव हारने के तुरंत बाद उन्होंने जनता दल जॉइन कर लिया. इसके बाद वे धीरे-धीरे तत्कालीन सीएम लालू यादव के करीब होते चले गए.1996 में वो बाराचट्टी सीट से उपचुनाव में विधायक चुने गए. जब लालू यादव ने राजद का गठन किया तो मांझी राजद में शामिल हो गए. मांझी लालू यादव और राबड़ी देवी दोनों की सरकारों में मंत्री रहे, लेकिन डिग्री घोटाले में नाम आने पर उन्हें इस्तीफा देना पड़ा.

2005 में जब राजद के शासन का अंत हुआ और नीतीश कुमार बिहार के नए मुख्यमंत्री बने तो मांझी ने जदयू का दामन थाम लिया. वो नीतीश कैबिनेट में भी मंत्री रहे. 2005 से लेकर 2014 तक मांझी की पहचान जदयू नेता के तौर थी. नीतीश से अनबन के बाद 2015 में उन्होंने अपनी पार्टी बना ली. नाम रखा- हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (हम).उसी साल मांझी ने बीजेपी के साथ मिलकर 2015 का विधानसभा चुनाव लड़ा. दो में से एक सीट पर वो खुद हार गए. उनकी पार्टी ने भी सिर्फ एक ही सीट जीती. 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले मांझी NDA गठबंधन से अलग होकर छोड़ राजद-कांग्रेस के गठबंधन में शामिल हो गए. 2020 के विधानसभा चुनाव में मांझी नीतीश के साथ पहले NDA में थे, फिर उन्हीं के साथ महागठबंधन में चले गए.

बिहार में महादलित के लगभग 2% वोटर्स हैं. इसी वर्ग से मांझी भी आते हैं. खासकर गया जिले में उनकी इस वोट बैंक पर खास पकड़ है. पिछले कुछ वर्षों में उन्होंने इसका विस्तार बिहारभर में करने की कोशिश भी की है, लेकिन कामयाब होते नहीं दिखे. पॉलिटिकल एक्सपर्ट कहते हैं कि जीतन राम मांझी का भले कोई बड़ा जनाधार न रहा हो, लेकिन परसेप्शन के हिसाब से वे काफी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि मजबूरी में ही सही, वे बिहार के सीएम रह चुके हैं.साल 2020 के विधानसभा चुनाव में वे गया जिले की इमामगंज सीट से 15 हजार वोटों से जीते थे. उनके बेटे और दो अन्य ने भी हम के टिकट पर 2020 का विधानसभा चुनाव जीता था. यानी मांझी की पार्टी के विधानसभा में 4 विधायक हैं. मांझी की पार्टी का वोट शेयर लगभग 2-3 प्रतिशत है.

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