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आनंदमोहन की रिहाई कर सियासी भंवर में फंसे नीतीश कुमार.

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सिटी पोस्ट लाइव : आनंद मोहन की रिहाई के मामले में नीतीश कुमार उलझते जा रहे हैं. दलितों में यह संदेश जा चुका है कि नीतीश ने एक दलित अधिकारी के हत्यारे की सजा माफ कर दी है. जिस जी कृष्णैया की हत्या का आरोप आनंद मोहन पर था, उनकी पत्नी ने अब सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. पटना हाईकोर्ट में भी पीआईएल दर्ज कराई गई है. महागठबंधन के घटक सीपीआई (एमएल) ने भी इसका विरोध करना शुरू कर दिया है. आनंद मोहन की रिहाई के मद्देनजर बीजेपी सांसद राजीव प्रताप रूड़ी ने तो पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह की रिहाई की भी मांग कर दी है. सीपीआई (एमएल) ने अपने 6 समर्थकों को रिहा करने का दबाव बनाना शुरू कर दिया है. सुशील मोदी तो शराबबंदी कानून में जेलों में बंद 2500 बंदियों की रिहाई की मांग कर दी है.

विधि विभाग द्वारा आनंद मोहन समेत 27 बंदियों को रिहा करने का आदेश जारी किया गया था. आदेश में कहा गया था कि स्क्रीनिंग कमेटी ने 20 साल जिले में सजा काट चुके वैसे बंदियों की रिहाई का फैसला लिया है, जिनका आचरण जेल में रहते ठीक रहा. इसे ही आधार बना कर महागठबंधन में 12 विधायकों वाली पार्टी सीपीआई (एमएल) ने इसे सरकार का सेलेक्टिव एप्रोच बताया है. माले ने मांग की है कि उसके भी 6 समर्थकों को आजीवन कारावास की सजा हुई है. उन पर धरना-प्रदर्शन क दरान पुलिस से मार-पीट का आरोप है. अगर सरकार की नीयत ठीक है तो उन्हें भी रिहा कर देना चाहिए.

जेल से आनंद मोहन की रिहाई का गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी कृष्णैया की पत्नी उमा ने तर्क दिया है कि कानून के तहत जब आनंद मोहन जेल गए थे तो फिर कानून का हवाला देकर उनकी रिहाई कैसे हो गई. उन्होंने प्रेसिडेंट और पीएम से भी इस मामले में दखल देने की मांग की है. वह चाहती हैं कि आनंद मोहन वापस जेल भेजे जाएं. उन्होंने कहा है कि आनंद मोहन की रिहाई का जनता विरोध करती रही फिर भी उन्हें रिहा कर दिया गया.उमा ने कहा कि अच्छा आचरण के आधार पर सरकार रिहाई की बात कर रही है जबकि आनंद मोहन के सेल में मोबाइल पकड़ा जा चूका है.

उमा देवी मानती हैं कि राजनीतिक कारणों से आनंद मोहन को जेल से रिहा किया गया है. उन्होंने बिहार की जनता से अनुरोध किया है कि वे ऐसे व्यक्ति को कभी वोट न दें. अगर चुनाव में आनंद मोहन खड़े होते हैं तो उन्हें वोट न दें. उमा देवी का मानना है कि अधिकारियों का आनंद मोहन की रिहाई से मनोबल टूटेगा. कोई भी अधिकारी मन से काम नहीं करेगा. उसे हमेशा खतरा महसूस होगा. विपक्षी दल भी इसे राजनीतिक नजरिये से ही देख रहे हैं. बसपा सुप्रीमो मायावती और लोजपा (आर) के अध्यक्ष चिराग पासवान इसे दलितों का अपमान बता चुके हैं.

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