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‘इंडिया’ गठबंधन में बवाल, नीतीश ने कांग्रेस को घेरा.

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सिटी पोस्ट लाइव :विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A की एकता खतरे में है. गठबंधन में शामिल हर दल अलग अलग सुर अलाप रहे हैं. बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने के लिए इंडिया गठबंधन  तो विपक्ष ने बना लिया, लेकिन हर पार्टी की अपनी-अपनी अलग तैयारी है. इसका प्रमाण गठबंधन में शामिल बड़े नेताओं के सियासी बयानों से मिल रहा है. नीतीश कुमार से लेकर अखिलेश यादव और उमर अब्दुल्ला तक, सभी नेताओं ने ऐसे बयान दिये हैं  जो इशारा कर रहे हैं कि ‘इंडिया’ गठबंधन के अंदर सब कुछ ठीक नहीं है.

मिजोरम, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, राजस्थान और मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनावों की वोटिंग इसी महीने होनी है. समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने अपने-अपने उम्मीदवार उतार कर यह संकेत दे दिया है कि विपक्षी गठबंधन सिर्फ लोकसभा चुनाव के लिए है. राज्यों में इसका कोई मतलब नहीं. अगर राज्यों में मनमुटाव इतना है तो केंद्र में इनके बीच एकता बरकरार रह पाएगी, इसमें संदेह  है. दलों के भीतर की अंदरूनी लड़ाई अलग है. ऐसे में विपक्षी वोटों का बिखराव होना तय माना जा रहा है. इस बिखराव का सीधा लाभ बीजेपी या उसके नेतृत्व वाले एनडीए को मिलेगा.

विपक्षी गठबंधन में शामिल नेशनल कॉन्फ्रेंस (National; Conference) के नेता और जम्मू कश्मीर की पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला के अनुसार विपक्षी गठबंधन में खींचतान है. वर्ष 2019 में टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू ने जब विपक्षी एकता की पहल की थी, तब भी नेशनल कॉन्फ्रेंस के दोनों नेता साथ थे. यह अलग बात है कि एकता आखिर तक बरकरार नहीं रह पाई. इस बार भी उमर अब्दुल्ला को इसकी झलक विपक्षी गठबंधन में देखने को मिल रही है.

उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच जुबानी जंग छिड़ी हुई है. कौन कितनी सीटों पर लड़ेगा, इसे लेकर खींचतान मची हुई है. इसमें पलीता का काम किया है मध्य प्रदेश में हो रहे विधानसभा चुनाव ने. कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी को हिस्सा नहीं दिया. नतीजतन अखिलेश ने समाजवादी पार्टी के तकरीबन दो दर्ज उम्मीदवार मध्य प्रदेश में उतार दिए. खींचतान और बयानबाजी जैसी दिख रही है, उससे तो यही लगता है कि लोकसभा चुनाव में भी हालात में कोई बदलाव नहीं आने वाला है.

विपक्षी एकता की शुरुआत बिहार से शुरू हुई थी. सूत्रधार बने जेडीयू नेता और बिहार के सीएम नीतीश कुमार थे. विपक्षी नेताओं को उन्होंने एकजुट किया. लेकिन अब  विपक्षी गठबंधन में नीतीश की पूछ पहले जैसी नहीं रही. इससे नीतीश के नाराज होने की खबरें अक्सर आती रहती हैं. अब तो बिहार में सरकार चला रहे छह दलों के महागठबंधन में ही रार मची है. बड़े पैमाने पर शिक्षकों की नियुक्ति बिहार में हुई तो इसका श्रेय लेने की होड़ मच गई. नीतीश कुमार इसे अपनी सरकार की उपलब्धि मान रहे तो महागठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी आरजेडी इसे अपनी उपलब्धि मान रही है. आरजेडी नेताओं ने पोस्टर के जरिए और सोशल मीडिया के माध्यम से यह कहना शुरू किया है कि पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में इसका वादा किया था. सरकार में शामिल होते ही आरजेडी नेता और डेप्युटी सीएम तेजस्वी यादव ने अपने वादे पूरे किए हैं.

बिहार में शिक्षकों की बड़े पैमाने पर नियुक्ति को लेकर आरजेडी और जेडीयू की होड़ का आलम यह रहा कि तेजस्वी के लोगों ने इसे उनकी उपलब्ध बताई तो नीतीश ने इसे सरकार की कामयाबी मानी. आरजेडी ने पोस्टर लगाए तो नीतीश ने नियुक्ति पत्र बांटने वाले समारोह के मंच पर सिर्फ अपनी तस्वीर वाला बैनर ही लगाया. नीतीश के गुस्से का आलम यह कि शिक्षा विभाग का मामला होने के बावजूद बैनर में आरजेडी कोटे के शिक्षा मंत्री या तेजस्वी की तस्वीर से परहेज किया. मंच पर टंगे बैनर में सिर्फ नीतीश कुमार की तस्वीर ही दिखी.

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) के नेता डी राजा भी मानते हैं कि I.N.D.I.A में सब कुछ ठीक नहीं है. मामला सीटों के बंटवारे पर फंसा है. कांग्रेस कह चुकी है कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद ही सीटों के बारे में बातचीत होगी. कांग्रेस को उम्मीद है कि अच्छे और अनुकूल परिणाम आए तो वह सीटों पर बारगेन की स्थिति में होगी. यह बात विपक्षी खेमे के हर दल को पता है. पर, कोई अपने अस्तित्व के साथ समझौता करने के मूड में नहीं दिख रहा. आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी, जेडीयू, नेशनल कांफ्रेंस और टीएमसी जैसे दल विपक्षी एकता के नाम पर अपने पैर में कुल्हाड़ी मारना कत्तई पसंद नहीं करेंगे.

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