शिक्षकों की नौकरी बचाने में जुटी नीतीश सरकार.

पटना HC के फैसले को SC में चुनौती, कोर्ट ने बीएड योग्यताधारी शिक्षकों पर दिया था फैसला.

सिटी पोस्ट लाइव :  पहली से पांचवीं कक्षा के बीएड योग्यताधारी नियोजित शिक्षकों की नौकरी बचाने में बिहार सरकार जुटी हुई है. ऐसे शिक्षकों को सेवा सेवा में बनाए रखने के लिए पटना उच्च न्यायालय के फैसले को राज्य सरकार द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी जायेगी. शिक्षा विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक, महाधिवक्ता पीके शाही ने राज्य सरकार को सर्वोच्च न्यायालय में एसएलपी दायर का सुझाव दिया है.

 

शिक्षा विभाग के स्तर पर सैद्धांतिक सहमति पहले ही बन चुकी थी. बीएड योग्यताधारी नियोजित शिक्षक छठे चरण में पहली से पांचवीं कक्षा में अध्यापक के रूप में बहाल हुए थे. ऐसे शिक्षकों की संख्या तकरीबन दस हजार है.पटना उच्च न्यायालय का फैसला आने के बाद से छठे चरण में नियोजित पहली से पांचवीं कक्षा के बीएड योग्यताधारी दस हजार शिक्षकों में खलबली मची है.पटना उच्च न्यायालय ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के आलोक में छह दिसंबर, 2023 के अपने न्यायादेश में स्पष्ट किया है कि राज्य में प्राथमिक विद्यालयों में बीएड डिग्री धारक शिक्षक के रूप में नियुक्त करने के योग्य नहीं होंगे. इन विद्यालयों में बीएड उम्मीदवारों को शिक्षक के तौर पर नियुक्ति पर विचार नहीं किया जा सकता है.

 

न्यायालय ने यह भी कहा कि नियुक्त शिक्षकों के मामले में राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद यानी एनसीटीई के वर्ष 2010 ओरिजल अधिसूचना के अनुसार योग्य उम्मीदवार की नियुक्ति बरकरार रह सकती है और की गयी नियुक्ति के मामले में फिर से काम करना होगा.उच्च न्यायालय को बताया गया था कि 28 जून 2018 को एनसीटीई द्वारा जारी अधिसूचना को चुनौती दी गई, जिसमें प्राथमिक कक्षाओं में बीएड डिग्री धारक शिक्षकों को योग्य माना गया. इसी अधिसूचना को सर्वोच्च न्यायालय चुनौती देवेश शर्मा बनाम केंद्र सरकार के मामले में दी गई थी. सर्वोच्च न्यायालय ने इस अधिसूचना को रद्द कर दिया था.

 

एनसीटीई द्वारा 28 जून 2018 को जो अधिसूचना जारी की गई थी, उसमें बीएड डिग्रीधारक शिक्षकों को भी प्राथमिकी कक्षाओं में नियुक्ति के योग्य कहा गया था और उन्हें प्राथमिक शिक्षा में दो वर्षों के अंदर छह माह का एक ब्रिज कोर्स से संबंधित शिक्षकों को विशेष ट्रेनिंग दिलाने का भी प्रविधान किया था, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने उसे भी वैध नहीं माना था.

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