नीतीश के ‘एक के मुकाबले एक’ फार्मूले से बढ़ी BJP की बेचैनी.

NDA के लिए आसान नहीं होगा 2014 का प्रदर्शन दोहराना , विपक्ष का एक उम्मीदवार पड़ेगा भारी.

सिटी पोस्ट लाइव : विपक्षी एकता को लेकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक के मुकाबले एक का जो फार्मूला दिया है , वह बीजेपी के लिए बहुत बड़ी चुनौती बन सकता है.2014 लोकसभा चुनाव में पड़े वोटों की गिनती कर महागठबंधन उत्साहित है. दूसरी तरफ राजग अभी से काट खोजने में लगा है.2024 के चुनाव में अगर बीजेपी के उम्मीदवार के मुकाबले विपक्ष की ओर से एक उम्मीदवार दिया गया होता और आरजेडी, जेडीयू , कांग्रेस और वाम दलों के वोट एकसाथ आ गए तो बीजेपी गठबंधन मुशील में होता.

इस समय बीजेपी को एलजेपी के दोनों गुटों के अलावा राष्ट्रीय लोक जनता दल का साथ मिला है.मुकेश सहनी ने अभीतक अपना पता नहीं खोला है.यहीं समीकरण 2014 में भी था. अंतर सिर्फ यह है कि रालोसपा का नाम बदल कर राष्ट्रीय लोक जनता दल हो गया है.2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 29.40, लोजपा को 8.40 और रालोसपा को तीन प्रतिशत वोट मिला था. तीनों को मिलाकर 38.80 प्रतिशत हुआ. दूसरी तरफ अलग लड़कर जदयू को 15.80, गठबंधन में लड़कर राजद को 20.10, कांग्रेस को 8.40 और राकांपा को 1.20 प्रतिशत वोट मिला था.

2024 में ये सभी दल साथ लड़ें और वोट भी पहले की तरह मिले तो 45 प्रतिशत से अधिक वोट महागठबंधन के पक्ष में गोलबंद हो सकता है.वाल्मीकिनगर, पश्चिम चंपारण, पूर्वी चंपारण, सीतामढ़ी, शिवहर, मुजफ्फरपुर, गोपालगंज, हाजीपुर, पटना साहिब, पाटलिपुत्र, आरा और काराकाट ऐसी 12 सीटें हैं, जहां राजग को जदयू और राजद या उसके सहयोगी दलों को मिलाकर मिले वोटों से अधिक मिला था. हालांकि, बाकी 28 सीटों पर वर्तमान महागठबंधन के वोटों का योग राजग उम्मीदवारों को मिले वोटों से काफी अधिक था.

2015 के विधानसभा चुनाव में जदयू महागठबंधन के साथ आया. राजद, जदयू और कांग्रेस को मिलाकर 41.19 प्रतिशत वोट मिला. उधर, राजग का वोट 34.1 प्रतिशत पर सिमट गया.उस समय तक हिन्दुस्तानी अवामी मोर्चा का गठन हो गया था. वह राजग का घटक था. इसी परिणाम को ध्यान में रखकर भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव में जदयू को साधा. उसे 2014 में जीती अपनी पांच लोकसभा सीटें दे दी. चमत्कारी परिणाम आया. राजग को 40 में से 39 सीटें मिल गईं.

लालू प्रसाद और जंगलराज की वापसी का डर बीजेपी का सबसे बड़ा चुनावी नारा बनने जा रहा है.यही वह नारा था, जिससे राजग को जबरदस्त मदद मिलती रही है. 2005 में इसी के सहारे राजग बिहार की सत्ता में आया था. बाद में नीतीश कुमार ने विकास को बड़ा मुद्दा बनाया.फिर भी हर चुनाव में राजग का अंतिम हथियार लालू प्रसाद का विरोध और जंगलराज की वापसी का खतरा ही रहा. भाजपा और उसके सहयोगी दल बहुत सावधानी से आम लोगों के दिमाग में यह डालने की कोशिश कर रहे हैं कि नीतीश कुमार धीरे-धीरे तेजस्वी को सत्ता सौंप रहे हैं. बिहार जंगलराज के पुराने दौर में लौट जाएगा.

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