आनंद मोहन के जरिये राजपूतों को साधने की कोशिश.

आनंद मोहन की जेल से रिहाई का सियासी मतलब , क्यों उनकी रिहाई चाहते हैं तेजस्वी यादव?

सिटी पोस्ट लाइव : अपने जमाने के जानेमाने बाहुबली सांसद आनंद मोहन की किसी भी वक्त जेल से रिहाई हो सकटी है.अभी वो बेटे की सगाई के लिए 15 दिनों के पैरोल पर जेल से बाहर आये हुये हैं.उनकी रिहाई के लिए नीतीश कुमार की कैबिनेट ने कारा कानून में संशोधन कर दिया है. लालू यादव का विरोध कर ही आनंद मोहन राजनीति में निखरे थे, लेकिन अब लालू की ही पार्टी आरजेडी उन्हें रिहा कराना चाहती है. नीतीश कुमार आरजेडी के साथ ही सरकार चला रहे हैं, इसलिए यह बताने की जरूरत नहीं कि उनकी पार्टी जेडीयू भी इसका लाभ उठाएगी. लेकिन फिर भी एक सवाल सियासी फिजाओं में तैर रहा है कि ये ‘तीर’ किसके ‘तरकश’ में जाएगा.

पिछड़ी जातियों के बढ़ते वर्चस्व को लेकर ऊंची जतियों के जिन नेताओं ने 90 के दशक में प्रतिरोध का रास्ता अपनाया, उनमें आनंद मोहन सबसे ऊपर थे. जेपी आंदोलन से छात्र राजनीति में उतरे आनंद मोहन 1990 तक कोसी क्षेत्र में हत्या, अपहरण और फिरौती सहित कई मामलों में आरोपी बन गए थे. पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने उन्हें महिषी विधानसभा क्षेत्र से पहली बार 1990 में उम्मीदवार बनाया. वे जीत भी गए. यह वही साल था, जब आगड़ों-पिछड़ों की लड़ाई में लालू यादव पिछड़ों के साथ खड़े थे. पप्पू यादव उन्हें समर्थन दे रहे थे. पप्पू यादव भी आनंद मोहन के साथ ही सिंहेश्वर विधानसभा सीट से पहली दफा निर्दलीय चुन कर विधानसभा पहुंचे थे.

बिहार के कोसी अंचल में 90 केस दशक में दो नाम काफी चर्चित थे. उनमें एक नाम आनंद मोहन का था तो दूसरा नाम पप्पू यादव का था. आनंद मोहन अगड़ों के नेता के रूप में पहचाने जाने लगे तो पप्पू यादव पिछड़ों के हिमायती के तौर पर. नतीजा यह हुआ कि कोसी अंचल में अगड़ों-पिछड़ों के बीच खूनी संघर्ष 1990 के दौरान खूब हुए. कोसी के अंतर्गत आने वाले सहरसा, पूर्णिया, सुपौल, मधेपुरा इलाके कई जातीय लड़ाइयों के गवाह बने. 1990 में आनंद मोहन ने लालू यादव के खिलाफ बिहार पीपुल्स पार्टी नाम का अपना दल खड़ा किया. पीपुल्स पार्टी 1995 तक चली. आनंद मोहन के जीवन का महत्वपूर्ण पड़ाव वह माना जाता है, जब वैशाली लोकसभा उपचुनाव में उनकी पत्नी लवली आनंद ने आरजेडी के उम्मीदवार को धूल चटा दी. जनता के बीच यह संदेश गया कि लालू यादव को भी हराने की क्षमता आनंद मोहन में है.

1930 की जनगणना में बिहार में राजपूत आबादी 4 प्रतिशत बतायी गई थी. अब इसमें दो-तीन प्रतिशत का इजाफा हुआ होगा. आनंद मोहन की रिहाई का रास्ता बनाने वाले आरजेडी और जेडीयू को राजपूतों के इसी वोट बैंक को अपने पाले में करना है. 2014 के लोकसभा चुनाव में राजपूतों का स्पष्ट झुकाव बीजेपी की ओर था. आरजेडी-जेडीयू को उम्मीद है कि आनंद मोहन के बाहर आने और चुनाव प्रचार में उनके लगने पर राजपूत वोटों को वे अपनी ओर मोड़ पाएंगे. सक्रिय राजनीति में रहते आनंद मोहन अपनी आकर्षक भाषण शैली के लिए अगड़ों में लोकप्रिय रहे. उनके भाषणों में हालांकि तब लालू यादव ही निशाने पर रहते थे. तब लालू यादव को धमकाने में आनंद मोहन को तनिक भी संकोच नहीं होता था. अब चूंकि हालात बदल गए हैं, इसलिए पुरानी कटुता नहीं रहेगी.

2005 के बाद लालू यादव के चारा घोटाले में जेल जाने के बाद उनके राजनीतिक पराभव के दिन शुरू हो गए थे. हालांकि अब स्थिति बदली है. ठीक उसी तरह 1995 के विधानसभा चुनावों में हार के बाद आनंद मोहन के जीवन में राजनीतिक उतार-चढ़ाव आने शुरू हो गए. 1996 में आनंद समता पार्टी में शामिल हो गए. शिवहर लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े और जीत भी गए. दोबारा 1999 में भी वह जीते, लेकिन इस बार उनके तारणहार बने लालू यादव, जिनके विरोध से आनंद ने अपनी राजनीति शुरू की थी.

गोपालगंज के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट रहे जी कृष्णैया की बदमाशों ने हत्या कर दी थी थी. उस हत्याकांड में पुलिस ने आनंद मोहन को गिरफ्तार कर लिया. बाद में अदालत ने उन्हें फांसी की सजा सुनाई. हाईकोर्ट ने भी 2007 में उन्हें दोषी माना और फांसी की सजा बरकरार रखी. साल 2008 में आनंद मोहन की ओर से दाखिल पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने आनंद मोहन की फांसी की सजा उम्र कैद में बदल दी. तब से वे जेल में ही हैं. दो मौकों पर पैरोल पर वे बाहर आए. पहली बार बेटी की शादी के लिए और अब अपने विधायक बेटे चेतन आनंद की शादी में. जेल में उन्होंने 14 साल की सजा काट ली है. आम हत्या रहने की स्थिति में उन्हें जेल से रिहा किया जा सकता था, लेकिन उन पर लोक सेवक की हत्या का आरोप है. इसकी श्रेणी अलग थी. यही वजह रही कि कारा कानून में बिहार सरकार ने संशोधन कर लोक सेवक की हत्या को भी सामान्य हत्या की श्रेणी में कर दिया है. अब उनकी रिहाई का रास्ता साफ हो गया है.

आरजेडी किसी जमाने में भले ही आनंद मोहन की दुश्मन रहा हो, लेकिन अब स्थितियां बदल गई हैं. अब तो उनके बेटे चेतन आनंद आरजेडी के विधायक ही हैं. आनंद मोहन की रिहाई की मांग आरजेडी पहले से कर रहा है और अब तो सरकार में भी वह शामिल है. जिनको आपत्ति हो सकती थी, वह नीतीश कुमार थे. अब तो वे भी आरजेडी के साथ हैं. आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने पिछले ही साल कहा था वे आरजेडी को A to Z की पार्टी बनाएंगे. यानी हर जाति का प्रतिनिधित्व आरजेडी में होगा. अभी तक आरजेडी के पास जगदानंद सिंह और सुनील सिंह के अलावा कोई बड़ा नाम राजपूतों से नहीं था. आनंद मोहन के बाहर आने से यह कमी पूरी हो सकती है. आनंद मोहन के भाषण का जादू एक बार फिर राजपूतों और दूसरी सवर्ण जातियों के सिर चढ़ कर बोलेगा, इसी उम्मीद के साथ उन्हें बाहर लाने का रास्ता महागठबंधन सरकार ने साफ किया है.

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