आसान नहीं है नीतीश कुमार दिल्ली पहुँचने की डगर.

6 राज्यों का दौरा कर चुके हैं नीतीश कुमार लेकिन अभीतक तीन राज्यों में ही मिला है उन्हें समर्थन.

सिटी पोस्ट लाइव : बीजेपी के खिलाफ विपक्ष की गोलबंदी में जुटे नीतीश कुमार  अब तक 6 राज्यों के नेताओं से मिल चुके हैं. लेकिन 3 राज्यों को छोड़ दें तो बाकी के तीन राज्यों से उन्हें सफलता नहीं मिली है.नीतीश कुमार ने विपक्ष को गोलबंद करने का अभियान दिल्ली से शुरू किया था.दिल्ली में कांग्रेस प्रेसिडेंट मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी से मिले और विपक्षी एकता बनाने पर सहमति ली.इस मुलाकात के बाद सीएम नीतीश दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से भी मिले. नीतीश से मुलाकात के बाद केजरीवाल ने कहा कि 1 दिन के मुलाकात से सारी रणनीति नहीं बन जाती है. उसके लिए बार-बार मिलना होता है.दरअसल, दिल्ली में केजरीवाल कांग्रेस के लिए कितनी सीटें छोड़ेगें ,इसको लेकर वो असमंजस में हैं.

दिल्ली के बाद सीएम नीतीश 24 अप्रैल को विपक्षी एकता को मजबूत करने के लिए पश्चिम बंगाल पहुंच गए. वहां उन्होंने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात की. हालांकि, इस मुलाकात में ममता बनर्जी ने विपक्षी एकता को लेकर किसी तरह की दिलचस्पी नहीं दिखाई. हालांकि, उन्होंने नीतीश को आश्वासन जरूर दिया कि समय आने पर सब कुछ तय किया जाएगा. पश्चिम बंगाल में 2019 के लोकसभा चुनाव में ममता बनर्जी की पार्टी TMC ने बेहतर प्रदर्शन किया था. TMC ने 22 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी. बीजेपी  बंगाल में 2 सीट से छलांग लगाकर 18 लोकसभा सीटें जितने में कामयाब हो गई.जबकि कांग्रेस को केवल 2 सीटें ही मिली. लेफ्ट पार्टियों का सूपड़ा साफ हो गया.ममता के रिश्ते कांग्रेस से ठीक नहीं हैं इसलिए साथ आने की गुंजाइश बहुत कम है.

यूपी में लोकसभा 2019 के चुनाव में बीजपी ने 62 सीटों पर जीत हासिल की थी. अखिलेश यादव की पार्टी समाजवादी पार्टी को महज 5 सीटें आई थी. उस चुनाव में अखिलेश यादव ने BSP की मायावती के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था.मायावती को  10 सीटें मिल गई थीं. दूसरी तरफ कांग्रेस की हालत ऐसी थी कि केवल सोनिया गांधी की रायबरेली सीट को छोड़कर एक भी सीट उनके खाते में नहीं आई. पार्टी की हालत ऐसी हो गई कि राहुल गांधी ने अपनी परंपरागत सीट अमेठी को भी गंवा दिया.उत्तर प्रदेश की राजनीति में कभी अखिलेश यादव का भी वर्चस्व रहा है. वह अपनी पुरानी जमीन को वापस पाना चाहते हैं. ऐसे में अखिलेश के पास कांग्रेस के लिए कितना स्पेस होगा, ये समझ पाना ज्यादा मुश्किल नहीं है.

कभी बीजेपी से अपनी राजनीति की शुरुआत करने वाले ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक फिलहाल भाजपा से अलग हैं. उनकी राजनीतिक छवि ज्यादातर न्यूट्रल रहती है. मतलब वे किसी तरह की गठबंधन में विश्वास नहीं करते. वह जितना पक्ष में रहते हैं उतना ही विपक्ष में रहते हैं.यही वजह रही कि नीतीश कुमार जब उनके पास पहुंचे, तो मुलाकात के बाद उन्होंने कह दिया कि पटनायक से विपक्षी एकता पर कोई बात नहीं हुई. तब पटनायक ने भी इस मुलाकात को नॉन पॉलिटिकल बता दिया. मुलाकात के दूसरे दिन नवीन पटनायक ने अपना स्टैंड क्लियर कर दिया. ऐसे में माना जा रहा कि बिहार के मुख्यमंत्री को ओडिशा में विपक्षी एकता पर पूर्ण सहमति नहीं है. इसका दूसरा कारण ये भी है कि नवीन पटनायक नरेंद्र मोदी के भी उतने ही दोस्त हैं जितने नीतीश कुमार के हैं.

बीजेपी पिछले कई सालों  ओडिशा में अपनी जमीन तलाश रही है. 2019 में पार्टी सफल भी रही. पिछले लोकसभा चुनाव में ओडिशा की 21 लोकसभा सीट में से 12 सीटों पर भाजपा ने कब्जा जमा लिया. नवीन पटनायक की पार्टी बीजेडी को महज 8 सीट मिले, जबकि कांग्रेस को सिर्फ एक सीट से संतोष करना पड़ा.

झारखंड में JMM की सरकार है. पार्टी की विधानसभा में स्थिति मजबूत है , लेकिन लोकसभा में बीजेपी की स्थिति काफी मजबूत है. 2019 में 14 लोकसभा सीटों में JMM, कांग्रेस को सिर्फ एक सीट ही मिली थी, जबकि 12 सीटों पर NDA ने कब्जा जमाया था. जिसमें 11 सीट बीजेपी जीती थी और एक सीट आजसू के हिस्से आई थी.पड़ोसी राज्य होने की वजह से नीतीश कुमार को झारखंड से काफी उम्मीदें हैं, क्योंकि आरजेडी झारखंड सरकार में शामिल है. ऐसे में झारखंड को साधना नीतीश कुमार के लिए काफी आसान है.

झारखंड के बाद महाराष्ट्र ऐसा राज्य है जहां नीतीश की विपक्षी एकता की मुहिम को मजबूती मिल सकती है. इसे लेकर बिहार के मुख्यमंत्री गुरुवार को मुंबई में उद्धव ठाकरे और एनसीपी प्रमुख शरद पवार से मुलाकात की. दोनों ही नेताओं ने नीतीश कुमार को अपना समर्थन देने का आश्वासन दिया है.लेकिन शरद पवार कब क्या फैसला लेगें, कोई नहीं जानता.

2019 का लोकसभा हो या 2020 का बिहार विधानसभा का चुनाव  भाजपा और जदयू ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा. 2019 में 40 सीटों वाले बिहार में एनडीओ को 40 में से 39 सीट मिली थी. जिसमें भाजपा को 17, जदयू को 16, लोजपा को 6 और कांग्रेस को 1 सीट पर संतोष करना पड़ा था. NDA से अलग होने के बाद जदयू लोकसभा में कांग्रेस और टीएमसी के बाद विपक्ष में बड़ी पार्टी बन गई.2022 में स्थिति ऐसी बनी कि एक बार फिर दोनों पार्टियों की राह एक दूसरे से अलग हो गई. जदयू ने बीजेपी का साथ छोड़ आरजेडी के साथ मिलकर बिहार में सरकार बना ली. मजबूती के साथ नीतीश कुमार ने विपक्षी एकता की मुहिम को आगे बढ़ाया है और अलग-अलग राज्यों में घूम कर क्षेत्रीय दलों को इसके लिए राजी कर रहे हैं.

mission opposition