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बंगाल-पंजाब के बाद बिहार में भी हो गया ‘खेला’.

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सिटी पोस्ट लाइव :नीतीश कुमार ने बिहार के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है. उन्होंने एनडीए में जाने का फैसला भी कर लिया है. आज शाम को वह बिहार के 9वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण करेंगे. उनके इस्तीफे के बाद बिहार में सियासी भूचाल आ गया है. सबके जेहन  में यह सवाल जरूर आ रहा होगा कि इंडी गठबंधन अब क्या करेगा, क्योंकि नीतीश कुमार ही इस गठबंधन के अगुवा थे.इंडी गठबंधन को बनाने में नीतीश कुमार ने सबसे अहम भूमिका अदा की थी. नीतीश कुमार ही वो नेता थे जिन्होंने सबसे पहले बीजेपी के सामने देश को एक विकल्प देने का प्लान तैयार किया. उन्होंने विभिन्न प्रदेशों के नेताओं को साथ लिया और कांग्रेस को भी भरोसे में लिया. इसके बाद इंडी गठबंधन को बनाया गया.

लेकिन  जिस इंडी गठबंधन को उन्होंने बनाया उसी में वो  साइडलाइन कर दिए गए.नीतीश कुमार की अगुवाई में इंडी गठबंधन की पहली बैठक पिछले साल 23 जून को हुई थी. इसके बाद दूसरी बैठक बेंगलुरु, फिर तीसरी बैठक मुंबई और चौथी बैठक दिल्ली में हुई. 1 साल से भी कम समय यानी 220 दिनों में ही इंडी गठबंधन के साथ नीतीश कुमार ने ‘खेला’ कर दिया. आज भले ही खरगे यह कह रहे हों कि “देश में कई लोग आयाराम-गयाराम हैं”, लेकिन कुछ समय पहले तक इंडी गठबंधन ने ही नीतीश कुमार को संजोयक बनाने का प्रस्ताव दिया था. हालांकि, नीतीश कुमार ने खुद ही इस पद को ठुकरा दिया.

नीतीश कुमार की नाराजगी कई बार साफ देखने को मिली. जनता दल यूनाइटेड के नेता भी इंडी गठबंधन से नाराज चल रहे थे. सबसे बड़ी वजह थी समय पर सीट शेयरिंग ना हो पाना. नीतीश कुमार कई बार यह बात कह चुके थे सीट शेयरिंग में देरी करने से इंडी गठबंधन को नुकसान होगा. जदयू के मुख्य प्रवक्ता केसी त्यागी ने भी कहा था कि समय रहते सीट शेयरिंग कर लेनी चाहिए, लेकिन उनकी बातों का कोई असर नहीं हुआ. लालू यादव ने तो नीतीश के उलट ही बयान दिया. लालू यादव ने कहा कि कोई जल्दबाजी नहीं है. सबकुछ आराम से हो जाएगा.

राजनीतिक जानकार मानते हैं कि सीट शेयरिंग पर नीतीश कुमार की नाराजगी लगातार बढ़ रही थी. ऐसे में उनके इस्तीफे का ये बड़ा कारण हो सकता है.वहीं, नीतीश कुमार के वन टू वनफॉर्मूले पर भी सहमति नहीं बनी थी. नीतीश कुमार शुरू से चाहते थे कि बीजेपी के सामने वन टू वनफॉर्मूले को लागू किया जाए यानी एक उम्मीदवार के बदले विपक्ष का उम्मीदवार चुनाव लड़े. इस पर कोई सहमति नहीं बनी थी. ऐसे में साफ था कि नीतीश कुमार ने भले ही इंडी गठबंधन की नींव रखी हो, लेकिन उनकी किसी बात को खास तवज्जो नहीं दी जा रही थी.

 उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव जी कांग्रेस पार्टी के रवैये से दुखी हैं और उन्होंने कांग्रेस पार्टी को सुझाव दिया है कि ज्यादा जिम्मेदारी के साथ वो पेश आएं.बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी भी इंडी गठबंधन का हिस्सा है, लेकिन उसने भी लोकसभा चुनाव में ‘एकला चलो रे’ के संकेत दे दिए हैं. सीट बंटवारे को लेकर जहां कांग्रेस और टीएमसी में तनातनी जारी थी कि ममता बनर्जी ने 42 सीटों पर अकेले लोकसभा चुनाव लड़ने का एलान कर दिया.पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा, “कांग्रेस पार्टी के साथ मेरी कोई चर्चा नहीं हुई. मैंने हमेशा कहा है कि बंगाल में हम अकेले लड़ेंगे. मुझे इस बात की चिंता नहीं है कि देश में क्या किया जाएगा, लेकिन हम एक धर्मनिरपेक्ष पार्टी हैं और बंगाल में हैं. हम अकेले ही भाजपा को हरा देंगे.

” पंजाब में भी इंडी गठबंधन की हालत टाइट है. आम आदमी पार्टी अकेले ही लोकसभा चुनाव लड़ने की बात कह चुकी है.कांग्रेस की पंजाब इकाई भी आप के साथ राज्य में गठबंधन करके चुनाव नहीं लड़ना चाहती है.दिल्ली में भी केजरीवाल कांग्रेस के लिए दो से ज्यादा सीट छोड़ने को तैयार नहीं हैं.अब जब नीतीश कुमार NDA के साथ जा चुके हैं, इंडिया गठबंधन का खेल ख़त्म हो चूका है. बीजेपी की राह आसान हो गई है.

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