पकड़ुआ विवाह पर पटना हाईकोर्ट का बड़ा फैसला.

City Post Live

 

सिटी पोस्ट लाइव : बिहार में 90 के दशक में शुरू हुई पकड़ुआ विवाह की परंपरा आज भी जारी है. एक ऐसे ही मामले पर  पटना हाईकोर्ट ने अहम फैसला दिया है.कोर्ट  ने कहा है कि किसी महिला के माथे पर जबरदस्ती सिन्दूर लगाना या लगवाना हिंदू कानून के तहत विवाह नहीं है. एक हिंदू विवाह तब तक वैध नहीं है जब तक कि वही कृत्य स्वैच्छिक न हो और ‘सप्तपदी’ (पवित्र अग्नि के चारों ओर दूल्हा और दुल्हन द्वारा उठाए गए सात कदम) की रस्म के साथ न हो. ये फैसला न्यायमूर्ति पीबी बजंथरी और अरुण कुमार झा की खंडपीठ ने फैसला सुनाया है.

पीठ ने 10 नवंबर को एक जबरन विवाह को रद्द कर दिया. मामले में अपीलकर्ता, रविकांत , जो उस समय सेना में सिग्नलमैन था, का 10 साल से अधिक समय पहले बिहार के लखीसराय जिले में अपहरण कर लिया गया था, और प्रतिवादी दुल्हन के माथे पर सिन्दूर लगाने के लिए मजबूर किया गया था. ये सबकुछ बंदूक के जोर पर कराया गया था.पटना हाईकोर्ट ने कहा कि ‘हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधानों के अवलोकन से, यह स्पष्ट है कि जब सातवां कदम (दूल्हा और दुल्हन द्वारा पवित्र अग्नि के चारों ओर) उठाया जाता है, तो विवाह पूर्ण और बाध्यकारी हो जाता है. इसके विपरीत, यदि ‘सप्तपदी’ पूरी नहीं हुई है, तो विवाह पूर्ण नहीं माना जाएगा.

गौरतलब है कि  ‘ इस मामले में अपीलकर्ता का उसके चाचा के साथ 30 जून 2013 को अपहरण कर लिया गया था, जब वो लखीसराय के एक मंदिर में प्रार्थना करने गए थे. उस दिन बाद में, रविकांत को प्रतिवादी से शादी करने के लिए मजबूर किया गया था. रवि के चाचा ने जिला पुलिस में शिकायत दर्ज कराने की कोशिश की, जिसने कथित तौर पर उनकी सुनवाई नहीं की. इसके बाद, रवि ने लखीसराय में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत के समक्ष एक आपराधिक शिकायत दर्ज की.उन्होंने शादी को रद्द करने के लिए फैमिली कोर्ट का भी रुख किया, जिसने 27 जनवरी, 2020 को उनकी याचिका खारिज कर दी. उनकी अपील पर सुनवाई करते हुए, हाईकोर्ट की बेंच ने कहा कि फैमिली कोर्ट के निष्कर्ष त्रुटिपूर्ण थे और आश्चर्य व्यक्त किया कि जिस पुजारी ने प्रतिवादी की ओर से सबूत दिया था, न तो उन्हें ‘सप्तपदी’ के बारे में कोई जानकारी थी और न ही उन्हें वह स्थान याद था, जहां विवाह संस्कार किया गया था.

Share This Article