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 निर्जला एकादशी व्रत के मुहूर्त और व्रत पारण की सही विधि .

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सिटी पोस्ट लाइव : आज भगवान विष्णु को समर्पित साल की सबसे बड़ी निर्जला एकादशी का व्रत है. एकादशी का व्रत के प्रभाव से मानव के समस्ता पापों का नाश होता है और मृत्यु के पश्चात वह जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति हो जाता है. जगत के पालनहार भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए 24 घंटे निर्जल व्रत किया जाताहै , मान्यता है इससे धन-लक्ष्मी की प्राप्ति होती है और वैवाहिक जीवन सुख-शांति से परिपूर्ण रहता है.

 

निर्जला एकादशी का व्रत पारण द्वादशी तिथि पर किया जाएगा. निर्जला एकादशी व्रत खोलते समय कुछ खास नियमों का जरुर ध्यान रखें, एक चूक से 24 एकादशी व्रत के फल से वंचित हो सकते हैं, इसलिए आइए जानते हैं निर्जला एकादशी व्रत पारण मुहूर्त, नियम और कैसे खोलें ये व्रत.ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि दोपहर 01 बजकर 39 मिनट पर समाप्त होगी. इस तिथि के समापन से पहले एकादशी व्रत खोलने का विधाना है, नहीं तो व्रत व्यर्थ चला जाता है.

उपवास के कठोर नियमों के कारण सभी एकादशी व्रतों में निर्जला एकादशी व्रत सबसे कठिन होता है, इसमें अन्न के साथ जल का त्याग भी करना होता है. ऐसे में द्वादशी तिथि पर सबसे पहले स्नान के बाद विष्णु जी की विधि विधान से पूजा करें, ब्राह्मणों को भोजन कराएं, दान-दक्षिणा दें और फिर पानी पीकर व्रत खोलें. निर्जला एकादशी का व्रत पानी पीकर खोलना चाहिए, फिर पूजा में चढ़ाए रसीलेफल जरुर खाएं. इससे सेहत अच्छी रहेगी. एकादशी व्रत पारण हरि वासर में भूलकर भी न करें, नहीं तो व्रत-पूजन के फल से वंचित रह जाएंगे. द्वादशी तिथि के पहली एक चौथी अवधि को हरि वासर कहा जाता है. इस दौरान एकादशी का पारण करना अशुभ माना जाता है. इस साल निर्जला एकादशी का व्रत पारण गुरुवार के दिन है, ऐसे में जो लोग गुरुवार का व्रत करते हैं वह फलाहार करके एकादशी का व्रत खोलें.

निर्जला एकादशी का व्रत पानी पीकर खोलना चाहिए, फिर पूजा में चढ़ाए रसीलेफल जरुर खाएं. इससे सेहत अच्छी रहेगी. एकादशी व्रत पारण हरि वासर में भूलकर भी न करें, नहीं तो व्रत-पूजन के फल से वंचित रह जाएंगे. द्वादशी तिथि के पहली एक चौथी अवधि को हरि वासर कहा जाता है. इस दौरान एकादशी का पारण करना अशुभ माना जाता है. इस साल निर्जला एकादशी का व्रत पारण गुरुवार के दिन है, ऐसे में जो लोग गुरुवार का व्रत करते हैं वह फलाहार करके एकादशी का व्रत खोलें.

 

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