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कैसे फिर से BJP के साथ आये नीतीश कुमार ?

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सिटी पोस्ट लाइव : 2022 में एनडीए से रिश्ता तोड़ने के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि वो मरना पसंद करेंगे लेकिन उनके (बीजेपी) के साथ लौटना पसंद नहीं करेंगे. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि नीतीश कुमार के लिए एनडीए के दरवाज़े हमेशा के लिए बंद हो चुके हैं.बीजेपी के कई अन्य नेता भी इस बात को दोहराते रहे हैं. केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह तो पिछले हफ़्ते तक बोलते रहे हैं कि नीतीश कुमार के लिए एनडीए का रास्ता बंद हो चुका है.

 

नीतीश ने पिछली बार एनडीए छोड़ते वक़्त बीजेपी पर जेडीयू को कमज़ोर करने का आरोप लगाया था. जेडीयू के नेता कई बार ‘चिराग मॉडल’ की बात करके भी बीजेपी पर अपनी नाराज़गी ज़ाहिर करते रहे हैं.साल 2000 के विधानसभा चुनावों में एनडीए का हिस्सा होते हुए भी लोक जनशक्ति पार्टी के चिराग पासवान ने बिहार में जेडीयू के ख़िलाफ़ अपने उम्मीदवार उतारे थे. इससे जेडीयू को सीटों का बड़ा नुक़सान हुआ था और बिहार में तीसरे नंबर की पार्टी हो गई थी.जेडीयू ने अपने नेता और उस वक़्त अध्यक्ष रह चुके आरसीपी सिंह पर भी बीजेपी के साथ मिलीभगत का आरोप लगाया था. बाद में आरसीपी सिंह पार्टी से बाहर हो गए और अब वो बीजेपी में शामिल हो गए हैं.

 

नीतीश कुमार ने इस साल होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी के ख़िलाफ़ विपक्ष को एकजुट करने की पहल की थी.इस तरह से 18 विपक्षी दलों की पहली बैठक बिहार की राजधानी पटना में ही 23 जून 2023 को हुई थी.इस बैठक के बाद बिहार में महज़ 45 विधायकों के सहारे मुख्यमंत्री कुर्सी पर बैठे नीतीश कुमार राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में आ गए थे. इस तरह से पहली बार बीजेपी और नरेंद्र मोदी के लिए एक संगठित विपक्ष की चुनौती तैयार हो रही थी. लेकिन अब कहानी पूरी तरह से बदल गई है. “नीतीश को भी राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के बाद लगने लगा था कि बीजेपी का मुक़ाबला करना आसान नहीं होगा. दूसरी तरफ़ भले ही बिहार के बीजेपी नेता न चाहते हों लेकिन बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व नीतीश को अपने साथ जोड़ना चाहता था ताकि विपक्षी एकता की नींव ही कमज़ोर हो जाए.”

 

विपक्षी धड़े में रहकर नीतीश मुख्यमंत्री होने साथ ही राष्ट्रीय राजनीति में बड़ी और सक्रिय भूमिका में दिख रहे थे.फिर ये सवाल सबके जेहन में है कि  बीजेपी के साथ रिश्ते तल्ख़ होने के बाद भी नीतीश कुमार ने विपक्ष का साथ क्यों छोड़ा और उनकी एनडीए में वापसी की पहल किसने की?आरजेडी नेताओं के अनुसार नीतीश ने विपक्ष के गठबंधन का साथ छोड़ने की जो वजह बताई है, वह फर्जी है.उनके अनुसार  “जेडीयू के नेताओं और कुछ के क़रीबियों के उपर जाँच एजेंसियों का कसता शिकंजा इसकी सबसे बड़ी वजह है. कुछ मामलों में नीतीश के कुछ क़रीबी अधिकारियों तक जाँच की आँच पहुँच सकती थी और नीतीश के मन में यह डर भी होगा कि कहीं उनसे भी पूछताछ न शुरू हो जाए.”

 

गौरतलब है कि  प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी ने पिछले साल सितंबर महीने में जेडीयू एमएलसी राधा चरण सेठ को गिरफ़्तार किया था. राधा चरण सेठ की गिरफ़्तारी आरा के उनके घर से हुई थी. राधा चरण सेठ को मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में गिरफ़्तार किया गया था. ख़बरों के मुताबिक़ जलेबी बेचने के व्यवसाय से शुरुआत करने वाले राधा चरण सेठ बाद में कई तरह के कारोबार से जुड़े, जिनमें माइनिंग, होटल और रेस्टोरेंट का कारोबार भी शामिल है.जेडीयू एमएलसी राधाचरण सेठ को पिछले साल गिरफ़्तार किया गया था.पिछले साल नीतीश कुमार के क़रीबी माने जाने वाले जेडीयू विधायक और मंत्री विजय चौधरी के साले अजय सिंह उर्फ कारू सिंह के आवास पर भी आयकर विभाग ने छापेमारी की थी.बेगूसराय में बिल्डर कारू सिंह के आवास पर यह छापेमारी पटना में जून में विपक्षी दलों की मीटिंग के एक दिन पहले हुई थी.पिछले साल ही अक्टूबर के महीने में जेडीयू के क़रीबी माने जाने वाले ठेकेदार गब्बू सिंह के ठिकानों पर भी आयकर विभाग ने छापेमारी की थी.

 

नीतीश की एनडीए में वापसी की पहल करने वालों में नीतीश के क़रीबी माने जाने वाले विधान परिषद सदस्य  संजय झा और अशोक चौधरी और नीतीश के क़रीबी कुछ अधिकारियों की भी इसमें अहम भूमिका मानी जाती है. शिवानंद तिवारी का खाना है कि  नीतीश  चौबीसों घंटे ऐसे नेताओं से घिरे रहते हैं जो ‘मंडल’ विरोधी हैं.  इन सबने नीतीश को एनडीए में वापस जाने की सलाह दी होगी और ख़ुद नीतीश ने परोक्ष रूप से बीजेपी से संपर्क में होगें.

 

जेडीयू में बीजेपी के क़रीबी और बीजेपी के विरोधी दोनों तरह के लोग हैं, मसलन संजय झा नीतीश कुमार के बेहद क़रीबी हैं और बीजेपी के भी. इसलिए दोनो के बीच डोर के तौर पर संजय झा की भूमिका हो सकती है.नीतीश कुमार का यह फ़ैसला अचानक का फ़ैसला भी नहीं दिखता है. पिछले कई हफ़्तों से कई कार्यक्रमों में नीतीश और तेजस्वी यादव को एक साथ नहीं देखा गया था. नीतीश कई बार बिहार के राज्यपाल से भी मिले लेकिन तेजस्वी से उनकी दूरी बनी रही.

 

बिहार में निजी निवेश को बढ़ावा देने के लिए पिछले महीने यानी दिसंबर हुए ‘इन्वेस्ट बिहार’ कार्यक्रम में भी तेजस्वी यादव नज़र नहीं आए थे. इसमें अदानी ग्रुप ने बिहार में अपने कारोबार के विस्तार के लिए 8700 करोड़ रुपये का निवेश की घोषणा की थी.नीतीश ने ख़ुद पटना में पिछले साल नवंबर महीने में सीपीआई की रैली में पहुँचकर गठबंधन के प्रति कांग्रेस के रुख़ पर सवाल उठाया था. पिछले साल मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान चुनाव में हार के बाद तो जेडीयू ने कांग्रेस को सहयोगी दलों को उचित सम्मान देने की सलाह भी दी थी.

 

नीतीश कुमार को लेकर कांग्रेस दुविधा में थी.. नीतीश ख़ुद को लेकर कांग्रेस या बाक़ी कई दलों का भरोसा नहीं जीत पाए और सबके मन में यह सवाल हो सकता है कि ज़िम्मेदारी सौंपने के बाद नीतीश विपक्षी गठबंधन से दूर हो गए तो यह विपक्ष के लिए ज़्यादा बुरी स्थिति होती.हालाँकि गठबंधन को लेकर कांग्रेस के रुख़ पर भी कई लोग सवाल उठाते हैं. तीन विधानसभा चुनावों में हार के बाद काँग्रेस ने अचानक विपक्ष की मीटिंग बुला ली थी, जिस पर ममता बनर्जी ने तीख़ी प्रतिक्रिया दी थी.

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