सिटी पोस्ट लाइव : बिहार में चार सीटों के लिए हो रहे उपचुनाव का सटीक अंदाजा कोई नहीं लगा पा रहा है.इसकी एक ही वजह है प्रशांत किशोर के जन सुराज पार्टी का चुनाव मैदान में होना. प्रशांत किशोर (पीके) की नई पार्टी जन सुराज ने बिहार में एल लम्बे अरसे के बाद चुनाव को त्रिकोणीय बना दिया है.प्रशांत किशोर की वजह से सभी दलों की बदली हुई प्रचार की शैली और दोनों गठबंधनों की बेचैनी से साफ़ है कि प्रशांत किशोर को नजर-अंदाज नहीं किया जा सकता. जन सुराज भले एक भी सीट नहीं जीत पाए लेकिन उसकी वजह से ही किसी की हार तो किसी की जीत होगी.
दुसरे दलों के लिए चुनावी रणनीति बनानेवाले प्रशांत किशोर ने पहलीबार खुद अपना दल बनाकर राजनीती में कदम रखा है. पीके के लिए भी यह उपचुनाव बड़ी अग्निपरीक्षा की तरह है. तीन दशकों से बिहार की सत्ता में गहराई तक जड़ जमाकर बैठे दोनों बड़े गठबंधनों (राजग और महागठबंधन) के लिए भी यह मुश्किल घड़ी है, क्योंकि जन सुराज का प्रयास दोनों गठबंधनों के कोर वोटरों में सेंधमारी कर अपना रास्ता बनाने का है.जन सुराज किसी एक दल का नहीं बल्कि सबके वोट बैंक में थोडा बहुत सेंधमारी कर रहा है.
उप चुनाव का परिणाम ही बताएगा कि अगले वर्ष होने वाले विधानसभा के आम चुनाव के पहले सियासत की कैसी बिसात बिछेगी? आरजेडी ,जेडीयू और बीजेपी के कोर वोटर कितना एकजुट रह पाएंगे? पीके किसी परिवर्तन के वाहक बनेंगे या खुद परिवर्तित होकर फिर से पारिश्रमिक लेकर राजनेताओं की कुंडली बांचने लग जाएंगे? इस उपचुनाव से बिहार की सत्ता में कोई परिवर्तन नहीं होने जा रहा है, किंतु आम चुनाव से एक वर्ष पहले हो रहे इस सियासी संघर्ष को सेमीफाइनल की तरह माना जा रहा है. उपचुनाव के परिणाम की तरह भविष्य की संभावनाओं के भी तीन कोण होंगे.
बिहार में पिछले चार दशक से भी ज्यादा समय से सवर्ण राजनीति हाशिये पर है. लालू प्रसाद के राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने माय (यादव-मुस्लिम) समीकरण के सहारे भाजपा को अपने बूते बिहार की सत्ता से अभी तक वंचित रखा है.इसी तरह नीतीश कुमार के जदयू ने अन्य पिछड़ी जातियों को गोलबंद कर भाजपा एवं राजद की राजनीति को संतुलित करके रखा है. भाजपा को अपने कोर वोटरों के साथ-साथ नीतीश कुमार की पिछड़े वर्ग में पैठ का भी सहारा है. केंद्र में सरकार के साथ खड़े होने से नीतीश कुमार के वोट बैंक में एकजुटता आई है.जाहिर है इस उप-चुनाव में जन सुराज कोई बड़ा कमाल नहीं दिखा पायेगा लेकिन सभी सीटों पर किसी की हार का तो किसी की जीत की वजह जन सुराज ही बनेगा.
लगभग दो वर्षों से बिहार के गांव-गांव में पैदल घूमकर पीके ने दो अक्टूबर को अपनी पार्टी की नींव रखी है. पहले दिन ही दावा किया था कि उपचुनाव में ही सबका सफाया कर देंगे.अब दावा नहीं, दिखाने की बारी है. जीते तो सिकंदर और नहीं तो 20 25 तक ही नहीं 2029 तक प्रशांत किशोर को व्यवस्था परिवर्तन के लिए मेहनत करनी पड़ेगी.