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नीतीश हैं बेमिसाल, फिर भी क्यों नहीं बन पा रहे नेता?

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सिटी पोस्ट लाइव : नीतीश कुमार वर्ष 2005 से बिहार के मुख्यमंत्री हैं. उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान बिहार के विकास के लिए कई नई योजनाओं की शुरुआत की.बिहार को एक नई पहचान दी. उन्होंने सात निश्चय योजना लागू किए, शराबबंदी की, महिलाओं को निकाय-पंचायत चुनावों और नौकरियों में आरक्षण जैसे कई काम किए. उनके इन कामों को दूसरे राज्यों या केंद्र की सरकारों ने बाद में आजमाया. राज्य में सिर्फ स्टेट हाईवे का ही चेहरा नहीं बदला  बल्कि गांव-टोलों के पहुंच मार्ग भी चकाचक बन गये.बिहार में बिजली की 20-22 घंटे निर्बाध आपूर्ति नीतीश ने सुनिश्चित की. बालिकाओं को बाल विवाह से बचाने के लिए ऊंची शिक्षा तक पहुंचने की राह बनाई.लड़कियों को वजीफे का प्रावधान किया. उनके लिए नौकरियों और निकायों में खासा आरक्षण दिया. सात निश्चय के तहत हर घर नल का जल योजना शुरू की.

 

राजनीति एक ऐसा  संवैधानिक किला है  जिसके अंदर घिर जानेवाला कभी बाहर नहीं निकल पाता और जो इसकी घेराबंदी करना जानता है, उसी का परचम लहराता है. नीतीश इस किले में कभी नहीं घिरे, हमेशा उसकी घेराबंदी में सफल रहे.  कब किस दल के साथ हाथ मिलाना है और कब किससे कुट्टी करनी है, उनसे बेहतर कोई नहीं जानता. भले ही उनके इस आचरण की उन्हें पलटू राम कह कर आलोचना होती रही है, पर सच तो यह है कि ऐसे मौके गंवाना कौन चाहेगा?हर नेता की दृष्टि  उतनी दूर तक नहीं जा पाती, जहां तक नीतीश की नजर चली जाती है. कभी बीजेपी के साथ तो कभी आरजेडी के पास नीतीश अगर आते-जाते रहे हैं तो इसके पीछे उनकी यही दूर दृष्टि रही है.

 

केंद्र के इनकार के बाद जहां दूसरे राज्य जाति जनगणना के मुद्दे पर खामोश हो गए, वहीं नीतीश कुमार ने तकनीकी वजहों से जाति जनगणना की जगह सर्वेक्षण करा लिया. पहले तो यह माना गया कि अपनी बदहाली बता कर बार-बार बिहार को विशेष दर्जें की मांग करने वाले नीतीश कुमार जाति सर्वेक्षण के नाम पर बेवजह 500 करोड़ रुपये से अधिक की रकम बर्बाद कर रहे हैं. विरोधी इसके लिए उन्हें उलाहने और ताने भी देते रहे.लेकिन  नीतीश ने अदालतों और तकनीकी बंदिशों का ख्याल रखते हुए जाति सर्वेक्षण का काम पूरा करा लिया.

 

 अब सवाल उठने लगा कि इस जाति सर्वेक्षण का लाभ लोगों को कैसे दिलाएंगे? नीतीश ने  बिहार में जाति के आधार पर नीतीश ने आरक्षण सीमा बढ़ा दी. बिहार में आरक्षण अब 75 प्रतिशत हो गया है.  इसमें 13 प्रतिशत की वृद्धि का लाभ पिछड़े और अति पिछड़े को दिया गया, जबकि दो प्रतिशत का फायदा आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों को मिला. आर्थिक रूप से कमजोर तबके को 10 और अन्य वर्गों के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण पहले से मिलता रहा है.

 

अयोध्या राम का जन्मस्थान माना जाता है तो बिहार के सीतामढ़ी जिले के पुनौरा धाम को सीता की जन्मस्थली बताया जाता है.। भारतीय जनता पार्टी अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण से राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश कर रही है तो नीतीश कुमार कैसे चूकते. उन्होंने सीतामढ़ी जिले में मौजूद मां जानकी जन्मस्थली ‘पुनौरा धाम’ को विकसित करने का फैसला किया. कुछ ही दिनों पहले उन्होंने वहां कई विकास योजनाओं की आधारशिला रखी है.। हिन्दू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार राम की पत्नी सीता का जन्म पुनौरा धाम में ही हुआ था. पुनौरा धाम को विकसित कर सुंदर बनाने के लिए विशाल द्वार, परिक्रमा पथ, सीता वाटिका, लव-कुश वाटिका, मंडप और पार्किंग जैसी कई तरह की व्यवस्था राज्य सरकार रही है.

 

इंडिया गठबंधन बनाने में भी नीतीश कुमार की अहम् भूमिका रही है.लेकिन  कांग्रेस बड़ी पार्टी होने के कारण खुद स्टीयरिंग सीट पर जा बैठी है.नीतीश कुमार ने जिस विपक्षी एकता की बुनियाद  रखी कांग्रेस ने उस पर अब कब्जा जमा लिया है. इतना ही नहीं, बुनियाद रखने वाले को ही कांग्रेस ने किनारे कर दिया है. नीतीश के जाति जनगणना का सूत्र भी कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों को पसंद है, लेकिन नीतीश को पीएम या विपक्षी गठबंधन का कन्वेनर बनाने पर आपत्ति . कांग्रेस ने अगर कुछ साल गठबंधन की सरकार चलाई है तो नीतीश आरंभ से ही गठबंधन सरकार के मुखिया बने हुए हैं. इतना ही नहीं, गठबंधन में नीतीश की पूछ भी ऐसी रही है कि बीजेपी हो या आरजेडी, कम विधायकों के बावजूद दोनों ने नीतीश को ही गठबंधन सरकार में सीएम बनाया. यानी गठबंधन धर्म का पालन करने में भी नीतीश बेमिसाल हैं.

 

नीतीश की प्रयोगधर्मिता को उनके ही खड़ा किए इंडी अलायंस में महत्व नहीं मिल पा रहा है. इससे नीतीश कुमार का खीझना स्वाभाविक है. आरजेडी और जेडीयू के कुछ नेता भले यह सफाई देते फिर रहे हैं कि इंडी अलायंस में सब कुछ ठीक है. नीतीश कुमार की नाराजगी की कोई बात नहीं है, लेकिन इन्हीं पार्टियों के कुछ नेता सच उगलने में देर नहीं करते. जेडीयू के एक बहुचर्चित विधायक हैं गोपाल मंडल। बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का नाम जब पीएम पद के लिए प्रस्तावित किया और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने उसका समर्थन किया तो गोपाल मंडल ने अपनी प्रतिक्रिया यह कह कर जाहिर की है- खरगे-वरगे को कौन जानता है.

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