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क्या शरद पवार के इशारे पर अजित पवार ने किया ‘खेला?

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सिटी पोस्ट लाइव : एनसीपी में  बगावत की बात किसी के गले नहीं उतर रही.हमेशा शरद पवार के साये की तरह साथ चलनेवाले नेता अचानक एकसाथ उनका साथ कैसे छोड़ सकते हैं. प्रफुल्ल पटेल, छगन भुजबल और दिलीप वलसे पाटिल जैसे शरद पवार के विश्वासपात्र कैसे उनका साथ छोड़ सकते हैं? साये की तरह चलने वाले ये नेता एक झटके में शरद पवार के साथ धोखा कैसे कर सकते हैं?कहीं ये खेल शरद पवार के ईशारे पर तो नहीं हुई है.शरद पवार और उनकी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी यानी एनसीपी। एनसीपी में बगावत 2 जुलाई को ही हो गई थी. लेकिन पिछले चार दिन से जिस तरह अजित पवार गुट का शरद पवार के यहां आना-जाना लगा है उससे सियासी गलियारों में कयास लग रहे हैं कि शायद पवार साहब की पिक्चर अभी बाकी है.

सियासत के चाणक्य कहे जाने वाले शरद पवार के बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कह चुके हैं कि ‘शरदराव में एक किसान वाली क्वॉलिटी भी है. जिस तरह किसान को मौसम का अंदाजा होता है, शरद पवार ने उसका इस्तेमाल राजनीति में खूब किया है.ऐसे में अटकलें लग रही हैं कि कहीं शरद पवार ने खुद ही तो भतीजे अजित और दूसरे नेताओं को बीजेपी का समर्थन करने की मौन सहमति तो नहीं दी थी? या फिर शरद पवार को ही अपना गुरु बताने वाले अजित, छगन भुजबल और बाकी नेताओं ने मौसम का रुख देखते हुए बीजेपी का साथ कर लिया? क्या वाकई शरद पवार को पहले से कुछ भनक नहीं थी या फिर पर्दे के पीछे की बात कुछ और ही है.

27 अप्रैल को शरद पवार ने मुंबई में एनसीपी के युवा मंथन कार्यक्रम के दौरान कहा कि अब रोटी पलटने का सही वक्त आ गया है. सभी ने इसके अलग-अलग मायने निकालने शुरू कर दिए. इसके कुछ दिन बाद ही (2 मई) शरद पवार ने एनसीपी के अध्यक्ष पद से इस्तीफे का ऐलान कर दिया. साथ ही बेटी सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल को कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त कर दिया. तीन दिन बाद 5 मई को शरद पवार ने इस्तीफे का फैसला वापस ले लिया. इस तरह उन्होंने भतीजे अजित पवार की बगावत का रास्ता खोल दिया.

अजित पवार के साथ गए एनसीपी के लगभग सभी बड़े नेता शिंदे-फडणवीस सरकार में मंत्री हो गए. इनमें से अधिकतर के खिलाफ करप्शन का केस चल रहा है. अजित पवार, छगन भुजबल, हसन मुश्रीफ और धनंजय मुंडे के खिलाफ अलग-अलग घोटाले की जांच चल रही है.मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, शपथ लेने वाले 9 नेताओं समेत 10 एनसीपी नेता दो महीने से शरद पवार से मुलाकात कर रहे थे. उन्हें बता रहे थे कि अधिकतर विधायक बीजेपी और शिंदे सेना के साथ जुड़ना चाहते हैं. वहीं कुछ सर्वे इस ओर भी इशारा कर रहे थे कि कांग्रेस और उद्धव के साथ जाने पर लोकसभा चुनाव में पवार की एनसीपी को घाटा हो सकता है. दूसरी ओर, बीजेपी के साथ जाने में 2024 में केंद्र का दरवाजा भी खुल सकता है.

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