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विपक्षी एकजुटता कैसे बनेगी BJP के लिए चुनौती?

कई राज्यों में त्रिकोणात्मक लड़ाई, फिर कैसे बीजेपी को चुनौती दे पायेगा 15 दलों का विपक्ष.

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सिटी पोस्ट लाइव :पटना में हुई विपक्षी एकता की बैठक से तस्वीर साफ़ है कि इसबार लोक सभा चुनाव में कई राज्यों में लड़ाई त्रिकोणात्मक होगी.विपक्षी एकता की बैठक में 15 दल के नेता साथ बैठे लेकिन इनमे से अरविन्द केजरीवाल  और ममता बनर्जी क्या करेगें, किसी को पता नहीं.दूसरी बड़ी बात ये है कि इस विपक्षी एकता में कई ऐसे दलों के नेता नजर नहीं आये जिनकी अपने राज्य में मजबूत पकड़ है. जिस तरह से विपक्षी दलों के दो खेमे बन गए हैं, उससे बीजेपी को ही फायदा होने वाला है. तेलंगाना में बीआरएस की सरकार है. सीएम केसी राव का फोकस अब अपनी पार्टी के विस्तार पर है. तेलंगाना में वे  एकजुट विपक्ष के लिए बड़ी चुनौती बनेगें. तेलंगाना में अगर विपक्षी वोटों का बंटवारा हुआ तो यब बीजेपी के हित में ही तो होगा.

 

ओडिशा में बीजू जनता दल की सरकार है. नवीन पटनायक ने शुरू में ही नीतीश कुमार को साफ-साफ बता दिया था कि वे किसी दल या गठबंधन के साथ चुनाव नहीं लड़ेंगे. ऐसे में विपक्षी वोट बंटेंगे तो क्या बीजेपी को फायदा नहीं होगा ? विपक्षी एकता बैठक से कई ऐसे दल नदारद रहे, जिनका अपने राज्यों या कम्युनिटी में खासा जनाधार रहा है. एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी, बीएसपी की मायावती, वाईएसआर कांग्रेस के जगन मोहन रेड्डी, टीडीपी के चंद्रबाबू नायडू, जेडीएस, अकाली दल, बीजेडी के नवीन पटनायक, बीआरएस के केसीआर जैसे नेता तो प्रत्यक्ष तौर पर विपक्षी एकजुटता से अलग रहे. इनमें कुछ ने रुचि नहीं दिखाई तो कुछ को आमंत्रित ही नहीं किया गया.इनकी वजह से विपक्षी वोट बंटेंगे तो  बीजेपी को फायदा  होगा. आम आदमी पार्टी और ममता बनर्जी की टीएमसी भी आने वाले दिनों में एकजुटता तोड़ कर अगर इन्हीं नेताओं की कतार में शामिल दिखें तो आश्चर्य नहीं. यानी चुनावी जंग तितरफा होने के प्रबल संकेत मिल रहे हैं.

 

  इस बार लोकसभा का चुनाव दिलचस्प होगा. विपक्ष के 15 दल एकजुट होकर एनडीए के खिलाफ साझा उम्मीदवार उतारने की तैयारी में है. बीजेपी के नेतृत्व वाला एनडीए भी मुकाबले के लिए अपनी तैयारी में कोई कोर कसर नहीं छोड़ने वाला.लेकिन एक बात तो साफ है कि चुनावी जंग में दो खेमे नहीं, बल्कि तीन खेमे होंगे. बीजेपी के लिए यही सबसे बड़ी सुकून की बात है. विपक्षी एकता में जुटे दल इस बात को लेकर निश्चिन्त हैं कि  2019 में लोकसभा चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर 37.6 प्रतिशत था और  15 दल जो एक साथ आने को तैयार हुए हैं, उनके वोट मिला कर 37.3 प्रतिशत हैं. यानी मात्र 15 प्रमुख विपक्षी दल ही बीजेपी की बराबरी करने के लिए पर्याप्त हैं. अगर नरेंद्र मोदी की सरकार के एंटी इन्कम्बैंसी को ध्यान में रखें, जो किसी भी सत्ताधारी के लिए स्वाभाविक स्थिति होती है तो विपक्षी दल पाशा पलटने में कामयाब हो जाएंगे.

 

विपक्षी एकजुटता बरकरार रहेगी या टूट जाएगी, ये तो सीट बटवारे के समय पता चलेगा. सीटों के बंटवारे का कोई मान्य या किताबी फार्मूला नहीं है. इसके लिए दो हो मानक हो सकते हैं. लोकसभा या विधानसभा चुनावों में प्राप्त मतों को सीट बंटवारे का आधार बनाया जाए. अगर यह मानक तय हुआ तो कांग्रेस का क्या होगा, जिसे यूपी, बिहार, बंगाल जैसे राज्यों में पिछले लोकसभा चुनाव में मुट्ठी भर ही वोट मिले थे. कांग्रेस यहीं आकर अलग चलने का रास्ता अख्तियार कर सकती है.कांग्रेस को गुमान है कि उसकी चार राज्यों में सरकारें हैं. हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक के हालिया चुनावों में उसे कामयाबी हासिल हुई है. राहुल गांधी की मेहनत भारत जोड़ो यात्रा के महीनों चले अभियान में साफ-साफ दिखी है. कांग्रेस के बारे में यह परसेप्शन भी बन रहा है कि वह रिवाइव कर रही है. तब सीट शेयरिंग में वह क्यों कंप्रोमाइज करेगी?यूपी में अखिलेश यादव क्या कांग्रेस को समाजवादी पार्टी के बराबर सीटें देने को तैयार होंगे या ममता बनर्जी कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियों को जमीन देकर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारेंगी? मायावती यूपी में विपक्ष का खेल बिगाड़ सकती हैं.विपक्षी एकजुटता की कामयाबी में कई ऐसे अवरोध नजर आते हैं, जो बीजेपी की राह आसान बना सकते हैं.

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