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लालू-नीतीश के बीच जारी है शह-मात का खेल.

क्या लालू यादव की सियासी जाल में 'फंस' गए नीतीश कुमार, CM की कुर्सी बचाने का क्या है रास्ता?

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सिटी पोस्ट लाइव : मुंबई में इसी महीने के आखिर सप्ताह में होनेवाली I.N.D.I.A. गठबंधन  की तीसरी बैठक में कई अहम् फैसले होने हैं.अगर सब कुछ ठीक रहा तो लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बनने वाली 11 सदस्यों वाली कोआर्डिनेशन कमेटी में नीतीश को जगह मिल जाएगी. उन्हें गठबंधन का संयोजक भी मनोनीत कर दिया जाएगा. लालू से राहुल गांधी की मुलाकात के बाद सैद्धांतिक रूप से इस बात पर सहमति बन गई है कि नीतीश कुमार समन्वय समिति के संयोजक बनेंगे और सोनिया गांधी यूपीए की चेयरपर्सन की तरह I.N.D.I.A की भी चेयरपर्सन रहेंगी.  नीतीश संयोजक बन कर चुनाव के लफड़े सलटाते रहेंगे. जो मामला अनसुलझा रह जाएगा, उसे सोनिया गांधी बहैसियत चेयरपर्सन सुलझाएंगी. लालू को इसका फायदा यह मिलेगा कि नीतीश कुमार को फुल टाइम काम मिल जाएगा और उन्हें बाध्य होकर बिहार छोड़ना पड़ेगा.तेजस्वी यादव सीएम बन जायेगें.

तेजस्वी यादव को सीएम बनाने के लिए  मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और आरजेडी के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ( Lalu Yadav ) में शह-मात का खेल चल रहा है. नीतीश कुमार ( Nitish Kumar ) अब लालू की हर बात मानने को तैयार हैं, लेकिन अभी बिहार छोड़ने को तैयार नहीं हैं. है.लेकिन लालू यादव  हर हाल में उन्हें बिहार छुड़ाना चाहते हैं. विपक्षी दलों के गठबंधन I.N.D.I.A की अगली प्रस्तावित बैठक में शायद लालू अपने मकसद में कामयाब हो सकते हैं.

लालू यादव की गांधी परिवार से निकटता उनको अपने मकसद में कामयाब बनाने में मददगार साबित हो रही है. लालू यादव की soniya गांधी परिवार से निकटता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि  सजा पर सुप्रीम कोर्ट से रोक लगते ही राहुल गांधी लालू के घर पहुंच गए. नीतीश कुमार को समन्वय समिति का संयोजक बनाने की बात हुई. नीतीश की पलटी मार राजनीति पर राहुल ने आशंका जाहिर की तो लालू ने इसकी भी काट सुझा दी. नीतीश कुमार को संयोजक बनें तो बनाया जाएगा, लेकिन उनके ऊपर सोनिया गांधी चेयरपर्सन बन कर बैठी रहेंगी, ताकि नीतीश ने फिर पलटी मारी तो विपक्षी गठबंधन की सेहत पर कोई असर न पड़े.

लालू यादव का सपना है कि वे जितनी जल्दी हो, बेटे तेजस्वी यादव को सीएम की कुर्सी पर बैठा देखें. इसलिए उन्होंने सबसे पहले नीतीश को एनडीए से निकाल कर महागठबंधन के साथ जोड़ा. दोनों बेटों को एकोमोडेट कराया. साथ ही नीतीश को राष्ट्रीय राजनीति और पीएम का सपना दिखाया. इसी शर्त पर नीतीश महागठबंधन की ओर से सीएम भी बने. नीतीश के लिए यह तात्कालिक राहत थी. उन्हें भी इसका अनुमान नहीं था कि सच में उन्हें बिहार की गद्दी छोड़ने का यह लालू द्वारा बिछाया जा रहा जाल है. अब नीतीश उस जाल में फंस चुके हैं. हालांकि नीतीश भी कच्चे  खिलाड़ी नहीं हैं. उन्होंने 2025 में बिहार विधानसभा का चुनाव तेजस्वी के नेतृत्व में लड़ने की घोषणा कर अपनी कुर्सी सुरक्षित कर ली है.लेकिन लालू यादव  जल्दबाजी में हैं. उनकी हड़बड़ी का आलम यह है कि आठ महीने बाद होने जा रहे लोकसभा चुनाव से पहले ही बिहार से उन्हें विदा करना चाहते हैं.

बात जितनी आगे बढ़ चुकी है, उसमें नीतीश कुमार के सामने दो ही रास्ते  हैं. पहला कि वे नफा-नुकसान की परवाह किए बगैर लालू की बात माँ लें और तेजस्वी के लिए सीएम की कुर्सी छोड़ दें. दूसरा कि वे  कुर्सी सुरक्षित रहने की गरंटी पर एनडीए के साथ चले जाएं. एनडीए में नीतीश को अभी भी अपनी शर्तों पर इंट्री मिल सकती है. केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले  नीतीश को एनडीए में लौट आने का आग्रह भी कर चुके हैं.राहुल गांधी की सजा पर रोक लगने से कांग्रेस जिस तरह उत्साहित है, उससे अब यह बात साफ हो गई है कि पीएम के सबसे बड़े दावेदार वही हैं.  मसलन नीतीश विपक्षी गठबंधन के साथ रहते हैं और राजनीति से संन्यास नहीं लेते तो उन्हें लोकसभा का चुनाव लड़ कर राष्ट्रीय राजनीति में फिर उतरना पड़ेगा. जीवन में एक बार विधायकी और एक बार सांसदी के अलावा नीतीश ने अब तक चुनाव नहीं लड़ा है. इसलिए यह स्थिति उनके अनुकूल नहीं होगी.

भाजपा और उसके सहयोगी दल बार-बार ये दावा करते रहते हैं  कि लोकसभा चुनाव तक जेडीयू टूट जाएगा. ज्यादातर उसके विधायक-सांसद एनडीए के किसी घटक दल के साथ होंगे. सच तो यही है कि लालू को भी इसका इंतजार कर रहे हैं. इसलिए कि जेडीयू के टूटने पर 8 विधायकों ने भी साथ दे दिया तो आरजेडी की सरकार बन जाएगी. बिहार में सरकार बनाने के लिए 122 सदस्यों का समर्थन जरूरी है. बिहार में बने महागठबंधन में जेडीयू को छोड़ आरजेडी, कांग्रेस और वाम दलों के 114 विधायक हैं. यानी बहुमत से महज 8 विधायक कम हैं. तब तो नीतीश का नामलेवा भी शायद ही कोई बचेगा. यानी लाठी भी नहीं टूटेगी और सांप भी मर जाएगा.

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