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किसके लिए काम कर रहे हैं प्रशांत किशोर?

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सिटी पोस्ट लाइव : देश के जानेमाने चुनावी रणनीतिकार  प्रशांत किशोर पॉलिटिशियन बनने की राह पर हैं. साल भर से प्रशांत बिहार में वैकल्पिक राजनीति का अलख जगा रहे हैं. हालांकि अभी तक उनकी कोई पार्टी नहीं है. वे जनसुराज नाम के अपने संगठन के जरिए बिहार के गांव-गांव में जा रहे हैं.प्रशांत किशोर का मिशन और विजन क्लीयर है. वे पहले बिहार के लोगों को जागरूक करना चाहते हैं कि कैसे लोगों के वोट लेकर बिहार के दो नेता सत्ता पर कुंडली मार कर बैठ गए हैं. शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा और रोजगार जैसे मूलभूत मुद्दों पर वे लोगों से सवाल करते हैं कि इसमें कोई परिवर्तन उनके वोट देने से आया है या नहीं?

 

रोजगार के लिए लोगों का दूसरे राज्यों में पलायन रुका है क्या? क्या सत्ता में बैठे नेताओं ने उनके वोटों की कोई कीमत चुकाई? अगर ऐसा किसी नेता ने नहीं किया है तो उसने कभी जनता के बारे में सोचा ही नहीं या सोचा भी तो वह कहीं धरातल पर भी दिखता है क्या? पीके इन्हीं सवालों के साथ अभी लोगों के बीच जा रहे हैं। उन्हें जागरूक कर रहे हैं कि वोट सोच-समझ कर दें. जाति-धर्म के नाम पर वोट बर्बाद न करें.

 

प्रशांत किशोर साफ कहते हैं कि अभी वे जिस अभियान पर निकले हैं, उसके पूरा होने के बाद ही पार्टी बनाने पर विचार करेंगे. वे इस बात का आकलन करेंगे कि उनके साथ जनता सच में जुड़ी है या उनके जाने पर लोगों का जुटान सिर्फ देखने भर के लिए था. जैसा दूसरे नेताओं के साथ अक्सर होता है. लोग सुनने कम, देखने ज्यादा जाते हैं. अगर सब कुछ ठीक रहा तो लोक सभा चुनाव से पहले ही वो  अपनी पार्टी की घोषणा करेंगे.

 

प्रशांत किशोर के लिए उत्साहजनक स्थिति यह रही कि सारण शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से उन्होंने जिस उम्मीदवार का समर्थन किया, उसने सत्ताधारी दल के उम्मीदवार को हराने में कामयाबी हसिल की. विधान परिषद चुनाव में कामयाबी जनसुराज समर्थित उम्मीदवार के पक्ष में गई. राजनीति में प्रशांत किशोर की यह पहली धमक थी. सारण शिक्षक निर्वाचन से प्रशांत किशोर के समर्थन वाले अफाक अहमद ने महागठबंधन समर्थित सीपीआई के उम्मीदवार पुष्कर आनंद को पराजित किया. यह स्थिति तब आई, जब प्रशांत की यात्रा के छह-आठ महीने ही पूरे हुए होंगे.

 

प्रशांत किशोर की यात्रा जहां से भी गुजरती है, अक्सर लोग उनसे एक सवाल पूछते हैं. लोग जानना चाहते हैं कि लाव लश्कर के साथ चलने वाली प्रशांत किशोर की यात्रा के लिए खर्च का पैसा कहां से आता है. इसका वे सपाट ढंग से जवाब भी देते हैं कि अब तक उन्होंने कई राज्यों में चुनावी रणनीतिकार के रूप में काम किया है. उससे हुई कमाई का पैसा खर्च के लिए पर्याप्त है. वे यह भी कहते हैं कि जिन राज्यों में उन्होंने सरकारें बनवाईं, वहां से उन्हें प्रचुर धन मिला. इसलिए किसी को यह शंका नहीं होनी चाहिए कि दूसरे किसी की फंडिंग से वे यात्रा पर निकले हैं.

 

प्रशांत किशोर के बारे में यह बात काफी महत्वपूर्ण है कि वे अपने लिए काम कर रहे हैं या किसी और के लिए. उनकी आलोचनाओं से न लालू-नीतीश बचते हैं और न नरेंद्र मोदी ही. यह बात जरूर है कि जितनी तल्खी वे लालू-नीतीश के प्रति दिखाते हैं, उतनी नाराजगी नरेंद्र मोदी से उनकी नहीं दिखती. पर, उनकी आलोचना से मोदी कभी नहीं बचते. संभव है कि प्रशांत ने अपना लक्ष्य तय कर लिया हो. उन्हें बिहार की रजनीति करनी है तो बिहार ही उनकी प्राथमिकता सूची में रहेगा. सोमवार को उन्होंने बयान जारी कर लालू प्रसाद यादव, राबड़ी देवी और उनके बेटे तेजस्वी यादव पर तंज किया.

 

उन्होंने कहा कि तेजस्वी यादव जैसे नेता अगर देश को नई दिशा देने लगेंगे तो समझ लीजिए कि देश बेड़ा गर्क हो जाएगा. उनसे देश का कोई भला होने वाला नहीं है. तेजस्वी के मां-बाप बिहार में मुख्यमंत्री रह चुके हैं. तेजस्वी अभी खुद उपमुख्यमंत्री हैं. लालू-राबड़ी ने तो बिहार को दिशाहीन कर दिया. तेजस्वी कुछ नहीं तो अपने विभागों की दशा ही ठीक कर दें. तब कहा जाएगा कि कोई बदलाव आया है. तेजस्वी को निशाने पर लेते हुए प्रशांत ने कहा कि डेप्युटी सीएम को न भाषा का ज्ञान है और न विषय का ज्ञान है, लेकिन तीखी टिप्पणी इजराइल और फिलिस्तीन पर करने से परहेज नहीं करेंगे.

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