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कौन करेगा इसबार गया संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व?

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सिटी पोस्ट लाइव :  1962 के बाद  गया संसदीय सीट को सुरक्षित कर दिया गया.इसके बाद से 2019 तक अनुसूचित जाति के उम्मीदवार ही गया संसदीय सीट से लोकसभा में प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. इसमें सबसे ज्यादा प्रतिनिधित्व मांझी समाज का रहा. जबकि दूसरे स्थान पासवान समाज का आता है. गया से प्रतिनिधित्व करने वाले उम्मीदवारों का कार्यकाल निरंतर बढ़ता गया. लेकिन कोई भी बड़ा कार्य गया संसदीय क्षेत्र में नहीं दिखता है. सबसे बड़ी बात है कि गया शहरी क्षेत्र और राष्ट्रीय राजमार्ग पर आज भी कई तरह की समस्या है. गया शहरी क्षेत्र की आबादी बढ़ी. लेकिन देश की आजादी के बाद फ्लाई ओवर नही बन सकता है.

दूसरे देश व प्रदेश से आने वाले पर्यटकों को जाम की समस्या से जूझना पड़ता है. सांसदों के प्रयास से यहां कोई रोजगार का साधन उपलब्ध नहीं कराया गया है. इसका प्रतिफल है कि दूसरे प्रदेशों में रोजगार खोजने के लिए युवा पलायन करते है. यहां विकास की कोई बड़ी लकीर नहीं खींचा गया है.गया संसदीय सीट से सबसे पहले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस सांसद ब्रजेश्वर प्रसाद 1957 से 1962 तक रहे.1967 में रामघनी दास रहे. पहली बार भारतीय जनसंघ -जनता पार्टी ने गठन के बाद 1971 में ईश्वर चौधरी को उम्मीदवार बनाया. उन्होंने जीत दर्ज की.

पहली बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस आई के रामस्वरूप राम  1980 में गया के सांसद बने. जनता दल गठन के बाद एक बाद फिर 1989 में ईश्वर चौधरी, 1991 में राजेश कुमार सांसद रहे.1996 में पहली महिला भगवती देवी सांसद रही. 1998 में भाजपा के कृष्ण कुमार चौधरी, 1999 में रामजी मांझी, राजद के 2004 में राजेश कुमार मांझी, 2009 से 2014 तक भाजपा के हरि मांझी और 2019 से जदयू के विजय मांझी गया संसदीय सीट का प्रतिनिधि किए हैं.

कुछ ही दिनों में लोकसभा आम निर्वाचन की घोषणा होगी. गया संसदीय सीट पर चुनाव प्रथम चरण में होने की उम्मीद है. ऐसे में एनडीए, महागठबंधन अपनी-अपनी उम्मीदवार का नाम तय करने में हर स्तर पर पड़ताल शुरु की है. दोनों गठबंधन चुनाव मैदान में उतारेगी, यह अभी संशय के घेरे में है. वर्तमान सांसद और पूर्व में गया संसदीय सीट पर चुनाव लड़ चुके उम्मीदवार को कोई गठबंधन अपना उम्मीदवार नहीं बनाएगी. यानि एनडीए और महागठबंधन से नये उम्मीदवार आने की उम्मीद है. यह उम्मीदवार अनुसूचित जाति के किसी भी समाज से हो सकता है.

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