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ठाकुर-ब्राह्मण विवाद को आनंद मोहन ने क्यों दिया तूल?

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सिटी पोस्ट लाइव : आनंद मोहन एकबार फिर से 90 के दशक वाले अपने तेवर में दिखना चाहते हैं.उस दशक में वो बिहार के सबसे बड़े राजपूत नेता के रूप में उभरे थे.एकबार फिर से वो  राजपूत समाज का नेता बनना चाहते हैं.उन्होंने इसीलिए  ठाकुरों को केंद्र में रखकर लिखी गई कविता को अपना  औजार बना लिया. यह कितना कारगर होगा, समय बताएगा, लेकिन यह बात अब किसी से छिपी नहीं है कि जिस आरजेडी के सांसद मनोज झा को केंद्र कर उन्होंने हंगामा खड़ा करने की कोशिश की है, आज वो उसी की वजह से जेल से बाहर हैं.

 

आरजेडी ने न सिर्फ उनके बेटे चेतन आनंद को विधायक बनाया, बल्कि उनकी पत्नी लवली आनंद को भी पार्टी का टिकेट दिया.जेल से छूटने के बाद आनंद मोहन किसी पार्टी में नहीं हैं, लेकिन उनकी रिहाई के पीछे आरजेडी की अहम् भूमिका रही है.उनकी रिहाई के लिए आरजेडी ने नीतीश कुमार जैसे मुख्यमंत्री को जेल मैन्युअल में  संशोधन के लिए मजबूर कर दिया.आनंद मोहन की नाराजगी की एक और प्रमुख वजह बताई जा रही है. पिछले दिनों आनंद मोहन अपनी पत्नी लवली आनंद के साथ लालू प्रसाद यादव से मिलने राबड़ी देवी के आवास पर गए थे. लालू ने मिलने से मना कर दिया. उनसे लालू के न मिलने के कारण चाहे जो रहे हों, लेकिन यह आनंद मोहन को जरूर नागवार लगा होगा.

 

उसके तुरंत बाद आरजेडी के राज्यसभा सांसद मनोज झा का ‘ठाकुर का कुआं’ का संसद में पाठ प्रकरण आ गया. यह आनंद मोहन के लिए अनुकूल मौका था. उन्होंने मनोज झा के कविता पढ़ने को मुद्दा बना लिया. राज्यभर में राजपूतों के बीच यह संदेश देने की कोशिश की कि आरजेडी सांसद मनोज झा ने जान-बूझ कर ठाकुरों के अपमान के लिए यह कविता पढ़ी. तर्क भी दिया कि महिला आरक्षण पर बहस के दौरान इस कविता को पढ़ने की जरूरत क्यों पड़ गई.आनंद मोहन ने लालू के न मिलने का जवाब अलग अंदाज में दिया है. उन्होंने संदेश देने की कोशिश की है कि लालू के इशारे पर ही मनोज झा ने कविता पढ़ी. आरजेडी के साथ जिन राजपूत नेताओं के ताल्लुकात हैं, उनकी ओर से कोई बयान इस मुद्दे पर अभी तक नहीं आया है. यहां तक कि अक्सर अपने टेढ़-मेढ़े बयानों के लिए चर्चित आरजेडी के विधायक सुधाकर सिंह और पार्षद सुनील कुमार सिंह भी खामोश हो गए हैं.

 

दरअसल,  आरजेडी के विरोध के बहाने आनंद मोहन ने राजपूतों में अपनी पकड़ को परखने की कोशिश भी की है. शायद वे देखना चाहते हों कि मंडल कमीशन के दौर में अपनी बिरादरी में उनकी जो छवि बनी थी, वह आज भी बरकरार है या नहीं.चर्चा तो यह भी है कि आनंद मोहन अपनी पुरानी बिहार पीपुल्स पार्टी को पुनर्जीवित करना चाहते हैं. नवंबर में उन्होंने पटना में एक बड़ी रैली का आयोजन भी किया है. रैली से पहले उन्हें जातीय गोलबंदी का यह अवसर अनुकूल लगा होगा. कुछ हद तक उन्हें इसमें कामयाबी भी मिली है. दूसरे और सीधे शब्दों में कहें तो आनंद मोहन आरजेडी से अब कोई ताल्लुक नहीं रखना चाहते.

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