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छठ पूजा की कहानी और उससे जुडी मान्यतायें.

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सिटी पोस्ट लाइव : लोक आस्था के महापर्व  छठ पूजा उत्तर प्रदेश और बिहार में बड़े धूमधाम से मनाई जाती है. छठी मैया और सूर्यदेव की उपासना का यह महापर्व खास महत्व का होता है. छठ पूजा का जिक्र महाभारत समेत कई ग्रंथों में है. इसकी शुरूआत को लेकर कई कहानी प्रचलित है, जो इसके महत्व को दर्शाता है. पटना के मशहूर ज्योतिषविद् डॉ. श्रीपति त्रिपाठी ने बताया कि छठ पूजा की परंपरा कैसे शुरू हुई.

 

मान्यता के मुताबिक, एक कथा प्रचलित है कि छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल के दौरान हुई थी. इस पर्व को सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा करके शुरू की थी. कहा जाता है कि कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे. वे रोज घंटों पानी में खड़े होकर सूर्यदेव को अर्घ्य देते थे. सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने. वहीं से पानी में खड़े होकर अर्घ्य देने की परंपरा शुरू हुई.महाभारत काल से जुड़ा हुआ एक और कथा प्रचलित है. जिसमें पांडवों और द्रौपदी ने अपना खोया हुआ मान सम्मान, धन दौलत, राजपाट को वापस पाने के लिए छठ किया था. इसके बाद सभी हस्तिनापुर को लौटे. इस व्रत के जरिए पांडवों को राजपाट भी वापस मिला.

 

पौराणिक कथाओं के अनुसार 14 वर्ष वनवास के बाद जब भगवान राम अयोध्या लौटे थे तो रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूय यज्ञ करने का फैसला लिया. मुग्दल ऋषि ने मां सीता को गंगाजल छिड़क कर पवित्र किया एवं कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया. इसके बाद माता सीता ने छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी.

 

पुराणों के अनुसार, प्रियव्रत नामक एक राजा की कोई संतान नहीं थी. इसके लिए उसने हर जतन कर कर डाले, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. राजा आत्महत्या करने का मन बना चुका था. तभी सपने में षष्ठी देवी प्रकट हुई और सूर्य उपासना के लिए कहा. राजा ने ऐसा ही किया और संतान की प्राप्ति हुई. इसके बाद से ही राजा ने अपने राज्य में यह त्योहार मनाने की घोषणा कर दी.

 

कलयुग में छठ को लेकर यह कहानी प्रचलित है कि सबसे पहले बिहार के पुराने गया जिले के ‘देव’ में छठ पर्व किया गया था. ‘देव’ अब औरंगाबाद में स्थित है. कहा जाता है कि किसी जमाने में एक व्यक्ति को कुष्ठ रोग हुआ था. इसके निवारण के लिए उसने कार्तिक महीने की षष्ठी तिथि को भगवान सूर्य की उपासना की थी. इससे वह शीघ्र ही ठीक हो गया. उसी समय से इस पर्व को आस्था के साथ मनाया जाने लगा.

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