City Post Live
NEWS 24x7

चिराग को चित्त करने के लिए नीतीश का ‘भीम’ दांव.

राज्य में 16% दलित वोटर्स, 6% LJP(R) के चिराग पासवान के पास , नीतीश की सेंधमारी की कोशिश.

- Sponsored -

- Sponsored -

-sponsored-

सिटी पोस्ट लाइव :बिहार में लोकसभा चुनाव की तैयारी में सभी पार्टियाँ जोरशोर से लगी हुई हैं.सभी दलों का जोर अपने पुराने जातीय समीकरण को बचाने और नए नए जातीय समीकरण बनाने पर है.एक तरफ बीजेपी सीएम नीतीश कुमार के कोर वोट बैंक कोइरी-कुर्मी में सेंधमारी करने की कोशिश कर रही है तो वहीं दूसरी ओर नीतीश कुमार चिराग पासवान के दलित वोट बैंक को नए सिरे से साधने में जुट गए हैं.नीतीश कुमार एक तीर से दो निशाने साध रहे हैं. एक तो राज्य में एक बड़े वोट बैंक में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं. दूसरा दलित के लीडर के रूप में पहचान बनाने वाले चिराग पासवान को कमजोर बना रहे हैं.

राज्य में लगभग 16% दलित वोटर्स हैं. इनमें लगभग 6% पर चिराग पासवान का एकाधिकार है.ये वोट चिराग पासवान की पार्टी के पक्ष में पूरी तरह से जाते रहे हैं.पहले तो नीतीश कुमार ने उनके चाचा पशुपति पारस को आगे बढ़ा दिया और अब भीम’ दांव चल दिया है. राज्य में पार्टी की तरफ से पहली बार अंबेडकर जयंती (14 अप्रैल) का आयोजन बड़े स्तर पर किया जा रहा है. दलितों से सीधा जुड़ने के लिए पार्टी 4 अप्रैल से राज्य भर में भीम चौपाल का आयोजन कर रही है. 14 अप्रैल से पहले अनुमंडल स्तर पर कार्यक्रम आयोजित करेगी. इस चौपाल में पार्टी के मंत्री और पूर्व मंत्री राज्य भर में दलितों के लिए सरकार की तरफ से चलाई गई नीतियों को प्रचारित कर रहे हैं.

बिहार की राजनीति में दलितों का बहुत बड़ा प्रभाव रहा है. राज्य की कुल आबादी में लगभग 16 फीसदी दलित हैं. राज्य के हर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में 40 से 50 हजार दलित मतदाता हैं, जो जीत हार में निर्णयक भूमिका निभाते हैं. दलितों में सर्वाधिक संख्या रविदास, मुसहर और पासवान जाति की है.दलित के लगभग 6% वोटों पर अभी तक लोक जनशक्ति पार्टी (आर) का एकाधिकार रहा है. पिछले दो लोकसभा चुनाव में एलजेपी ( उस समय पार्टी टूटी नहीं थी ) का परफॉर्मेंस 100% रहा है. 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी 6 सीटों पर जीतने में कामयाब रही.

हीं बात करें विधानसभा चुनाव की तो 2015 विधानसभा चुनाव में औसतन 5% से ज्यादा वोट मिले हैं. इस वोट को एलजेपी के संस्थापक राम विलास पासवान के परंपरागत वोट माना जाता है.उनके निधन के बाद उनके पुत्र चिराग पासवान का इस वोट बांक पर नियंत्रण है.हालांकि एलजेपी भी दो धड़ों में बंट गई है. एक धड़े का नेतृत्व चिराग के चाचा पशुपति पारस कर रहे हैं.लेकिन दलित चिराग पासवान को रामविलास पासवान का असली उतराधिकारी मानते हैं. चिराग पासवान दलित समाज के सबसे बड़े नेता हैं. हर चुनाव में इनकी पार्टी को 5-6% वोट मिलते हैं.

2020 के चुनाव में चिराग ने सबसे ज्यादा नुकसान नीतीश कुमार को पहुंचाया था.नीतीश कुमार विधानसभा में सीधे आधे हो गए और तीसरे नंबर की पार्टी बन गए. इसमें सबसे बड़ी भूमिका चिराग पासवान की रही. ऐसे में नीतीश कुमार हरसंभव कोशिश करेंगे कि बिहार में चिराग पासवान को कमजोर किया जाए. दूसरी तरफ चिराग भी लगातार नीतीश कुमार पर आक्रामक हैं. बिहार के उत्तरप्रदेश से लगने वाले लोकसभा क्षेत्र मुख्य रूप से-कैमूर, बक्सर, सासाराम, बेतिया, गोपालगंज में में बसपा का असर है.

पूर्व मुख्यमंत्री और हम के संस्थापक जीतन राम मांझी मांझी, 5.5 फीसदी मुसहर जाति के वोट पर असर डालने का दावा करते हैं.जीतन राम ने लगभग 8 महीने के अपने कार्यकाल में अपना सारा फोकस कमोबेश इसी बात पर रखा कि वह कैसे महादलित का चेहरा बन सकें और यह वोट उन्हीं के साथ रहे.लेकिन राजनीतिक पंडितों का मानना है कि जितने आक्रामक पासवान हैं चिराग पासवान को लेकर उतने मुसहर नहीं हैं.

-sponsored-

- Sponsored -

Subscribe to our newsletter
Sign up here to get the latest news, updates and special offers delivered directly to your inbox.
You can unsubscribe at any time

-sponsored-

Comments are closed.