सिटी पोस्ट लाइव :जेडीयू में सेकेंड लाइन तैयार नहीं है. सर्वोपरी नेता नीतीश कुमार स्वस्थ नहीं हैं. इसलिए उनका लहजा और लोगों से संवाद कायम रखने की विधा गायब होती दिख रही है. कहा जा रहा है कि नीतीश की सरकार या तो ब्यूरोक्रेट चला रहे हैं या फिर उनके खासमखास नेता. इसलिए खासमखास नेताओं और अधिकारियों में पावर को लेकर खींचातानी अब साफ दिखने लगी है. अशोक चौधरी के बयान के बाद जेडीयू में जारी गुटबाजी खुलकर सामने आ गई है. जेडीयू में बड़े नेताओं को अपने भविष्य की चिंता सताने लगी है. यही वजह है कि अशोक चौधरी ने खिन्न होकर अपने मन की खीझ एक्स पर उड़ेल दी.
मनीष वर्मा और श्याम रजक और अशोक चौधरी को नीतीश कुमार ने राष्ट्रीय महासचिव बना तो दिया है लेकिन केवल मनीष कुमार वर्मा ही सक्रीय नजर आ रहे हैं.अशोक चौधरी जो नीतीश कुमार के साये के साथ रहते थे आजकल दूर –दूर नजर आ रहे हैं.मंच पर उनकी कुर्सी की जगह भी बदल गई है.अब उनकी जगह विजय चौधरी नजर आ रहे हैं.चर्चा है कि अशोक चौधरी की बेटी के चिराग पासवान की पार्टी से चुनाव लड़ने से नीतीश कुमार नाराज हैं.ये भी कहा जा रहा है कि भूमिहार समाज पर आपतिजनक टिपण्णी करने के बाद भूमिहार नेता अशोक चौधरी के खिलाफ गोलबंद हो गये हैं.
सेकेंड लाइन के नेता कमजोर नीतीश की सरकार में अपनी हैसियत को ऊंचा साबित करने के लिए आपस में भिड़ने लगे हैं. एक तरफ आपस में भिड़ंत हो रही है तो दूसरी तरफ भविष्य को लेकर चिंता भी है. चिंता की वजह सिर्फ एक है कि नीतीश लाचार हैं, नीतीश बीमार हैं. इसलिए कमजोर पड़ रहे नीतीश का राजनीतिक भविष्य कब तक और जेडीयू पार्टी खेवनहार के अभाव में कहां टिक सकेगी ये सोच भी नीतीश के आस-पास के नेताओं को परेशान कर रही है. राजा कमजोर, इसलिए सेनापतियों में अहं का टकराहट होने लगा है. अशोक चौधरी ने अपनी बेटी को चिराग की पार्टी से समस्तीपुर से लोकसभा चुनाव लड़ाया. समस्तीपुर से नीतीश कुमार की सरकार के दूसरे बड़े मंत्री महेश्वर हजारी ने अपने बेटे सन्नी हजारी को कांग्रेस से मैदान में उतार दिया. नीतीश सरकार के दो मंत्रियों के बेटे और बेटी आमने-सामने थे. मगर, कमजोर और बेबस नीतीश इसे लोकसभा चुनाव में रोक पाने में असफल रहे.
नीतीश को जानने वाले समझते हैं कि नीतीश के पुराने समय में ऐसा कोई सोच ले ये भी संभव नहीं था. मगर, साल 2024 के लोकसभा चुनाव में नीतीश सरकार के दो बड़े मंत्री के बेटे और बेटी आमने-सामने थे और नीतीश मंत्रियों को परिवारवाद के खिलाफ आगे बढ़ने में रोक पाने में असमर्थ थे. हैरानी की बात यह है कि महेश्वर हजारी के बेटे कांग्रेस पार्टी से मैदान में थे जबकि नीतीश के बेहद खास समझे जाने वाले अशोक चौधरी की बेटी शांभवी चिराग पासवान की पार्टी से मैदान में थीं. इसलिए कहा जा रहा है कि नीतीश के नजदीकी सिपहसलार उनकी छत्रछाया में रहकर उनकी विरोधी पार्टियों में सेटिंग कर रहे थे. ये नीतीश कुमार कैसे पसंद करते.
समस्तीपुर नीतीश सरकार के एक और कद्दावर मंत्री विजय चौधरी का इलाका है. इसलिए वहां से अशोक चौधरी द्वारा अपनी बेटी को टिकट दिलाकर मैदान में उतारना विजय चौधरी को रास नहीं आया. इसलिए विजय ने कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा के साथ मिलकर श्याम रजक को पार्टी में एंट्री दे दी, जो एक दलित नेता के तौर पर आरजेडी में थे. जाहिर है कि अशोक चौधरी इससे विफर गए. इसलिए उनके मन का दर्द एक्स पर कविता के रूप में बाहर आ गया. अशोक चौधरी एक तरफ पार्टी द्वारा महेश्वर हजारी पर कार्रवाई चाहते थे लेकिन हजारी पर कार्रवाई तो दूर उल्टा चौधरी को कार्यकारिणी में जगह नहीं दी गई. हजारी के बेटे सन्नी इंडिया गठबंधन से चुनाव लड़ रहे थे और महेश्वर हजारी पार्टी लाइन से हटकर बेटे का सहयोग कर रहे थे. इस सबके बावजूद विजय चौधरी और संजय झा की जोड़ी ने अशोक चौधरी की एक न चलने दी. श्याम रजक को जेडीयू में महासचिव बनवाकर अशोक चौधरी को तगड़ा झटका दे दिया.
जेडीयू के बड़े नेता अपने भविष्य को लेकर चिंतित भी हैं. इसलिए राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह केंद्र में मंत्री बनकर बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व के साथ बेहतर तालमेल में जुट गए हैं. आठ महीने पहले तक जेडीयू और आरजेडी के साथ तालमेल कर सरकार चलाने के पक्षधर ललन सिंह पीएम मोदी और शाह की शान में कसीदे पढ़ते हुए अक्सर सुने जा सकते हैं. जानकार मानते हैं कि लोकसभा चुनाव में ललन सिंह समझ चुके हैं कि आगे की राजनीति के लिए महफूज ठिकाना कौन सा है. इसलिए ललन केंद्र की राजनीति पर फोकस कर बीजेपी के साथ बेहतर रिश्ते बनाने में लग गए हैं. सूत्रों की मानें तो जेडीयू में ललन सिंह के धुर विरोधी समझे जाने वाले अशोक चौधरी ललन सिंह से बेहतर रिश्ते बनाने में लग गए हैं. वहीं बीजेपी के बड़े नेताओं से संपर्क साध कैसे भविष्य की राजनीति को सुदृढ़ किया जाए, इसके प्रयास में भी लगे हुए हैं.
कहा जा रहा है कि नीतीश की निष्क्रियता और बढ़ी तो जेडीयू के भविष्य पर प्रश्न चिह्न लगना स्वाभाविक है. इसलिए संजय झा पहले से ही बीजेपी के फेवरेट हैं जबकि विजय चौधरी भी बीजेपी में जगह तलाशने में देर नहीं लगाएंगे ऐसा तय माना जा रहा है. ऐसे में श्रवण कुमार,विजयेंद्र यादव समेत उमेश कुशवाहा और कई अन्य ओबीसी नेताओं का रुख क्या होगा इसकी चर्चा भी दबी जुबान से पार्टी के भीतर ही होने लगी है. पार्टी के एक बड़े नेता कहते हैं कि नीतीश साल 2025 में जीत जाते हैं तो पार्टी का भविष्य अगला पांच साल सुरक्षित माना जा सकता है. मगर, नीतीश की हार हुई तो जेडीयू पार्टी कितनी देर टिकेगी ये सोचकर भी डर लगता है. जाहिर है कि सत्ता की चादर में सच छिपा हुआ है. मगर, जेडीयू के भविष्य को समझने वाले नेता अपने भविष्य के सुरक्षित करने में भी जुट गए हैं . जाहिर है कि सारा खेल जनता का नीतीश पर विश्वास कायम रहने तक है. इसलिए जेडीयू के भविष्य को लेकर सवाल उठना भी स्वाभाविक है.